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________________ अञ्जन प्र. कल्प ॥१९६॥ Jain Education किरणजालं सुतं ससि सुंदर, निहय-तम-पसर-महरुग्गयं दिणयरं ॥ ६ ॥ गम्भ (६ चंद्र ७ सूर्य) फलिह-डंडग्ग-लोलंत - सिय-धयवर्ड, पुन्नकलसं च सुहकमल-गंधुग्भडं || ७ || गव्भ. (८ ध्वजा ९ कुंभ) कुमुयकतहार-रम्मं महंतं सरं, बहुल-कल्लोल-मालाउरं सारं ॥ ८ ॥ गम्भ. (१० पद्मसरोवर ११ सागर ) विवि-मणि-भ-सालं विमाणं वरं, कंति कन्चुरिय-गयणं च रयणुक्करं ।। ९ ।। गम. (१२ विमान, १३ रत्नराशि ) धूमरहियं तदा हुयवहं सुमिणए, देवी वयणम्त्रि पविसंतयं पेन् ॥ १० ॥ गम्भ (१४ निर्धूम अग्नि) ।। इति च्यवनकल्याणक चैत्यवन्दन तथा स्तवन । परि. १ लृ ॥ परिशिष्ट नं. १ बृहत्स्नानविधिः - ( पाना नं. ९०नी टिप्पण) मेरु पर्वत उपर प्रभुजीने लई गया बाद आचारदिनकर - अर्हत्पूजनादिकमां आवती " बृहत्स्नात्रविधि " प्रमाणे समयानुसार संपूर्ण श्रीजिनजन्माभिषेक महोत्सव करावी शकाय २५० अभिषेक सुधी विधि करावी अष्टप्रकारी पूजा arat aste अथवा केवल ' पूर्व जन्मनि विश्वभर्तुरधिकं ' आदि १९ श्लोको बोलीने पण २५० अभिषेक करावी rgप्रकारी पूजादिक करावी शकाय । सौ प्रथम कुसुमांजलि हाथमां लइ नीचेनो श्लोक बोली कुसुमांजलि करवीः- नमोऽर्हत् पूर्व जन्मनि मेरुशिखरे, सर्वैः सुराधीश्वरै - राज्योद्भूतिमहे महर्द्धिसहितैः पूर्वेऽभिषिक्ता जिनाः । For Private & Personal Use Only ।। १९६ ॥ ainelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
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