SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अञ्जन प्र. कल्प ॥१३॥ ધ समज प्रमाणे आ एक प्रयोग - अखतरो हतो, जेनाथो "अंजनशलाका करवी एटले मोतने नोतरखुं " एवी बीकमां तथ्य केटलं, तेनो क्यास मळी रहे. आ प्रयोग निर्विघ्न सफल थतां, सं. १९८४ मां खंभातना श्री स्तंभन पार्श्वनाथनी प्रतिष्ठाना अवसरे तेओश्रीए विशेष जाहेर रूपमा अंजनशलाका करी. स्वयं प्रबळ सत्वशाली अने नैष्ठिक ब्रह्मचारी महापुरुष हता ने साथै पू. उदयसूरीश्वरजी महाराज जेवा समर्थ ज्ञाता अने योगी जेवा अनुभवसंपन्न शिष्य हता ने विधिकारक श्रावको पण ते कालना भद्रिक, पवित्र अने सात्विक श्रावको हता, एटले शा खामी रहे ? ने आवी परिपूर्णता होय त्यां विधि पण केवो दिव्य, विशुद्ध अने मंगलकारी बनी रहे । ने तो त्यां निष्फळता के विघ्नो संभवे पण केम ? आपछी सं. १९८९ मां श्रीकदम्बगिरितीर्थमां ते ओश्रीए, नीचेना श्रीमहावीर स्वामी जिनालयनी प्रतिष्ठाना तीर्थोद्वारना महान अवसरे, खूब विशाळ फलक पर अंजनशलाका करी - करावी. ए बखते पचीसेक हजारनी मेदनी त्यां एकत्र मळेही वळी, लोकोमां फफडाट पण बहु हतो, अने विरोधोयो तरकथी फेलाववामां पण आवेलो के पालीताणानी अंजनशलाकाभो वखते मरकी फाटी नीकळेला ने घणी जानहानि थइ हती, ते पछी कदी कोइए साहस कर्यु नथी; पण नेमिमूरिजी आ वखते करावे छे, ते मोढुं साहस छे, सावधान रहेजो; न कराववी जोइए व. व. वातो घणी प्रचारवामां आवी हती. छतां शासन सम्राट्ना ब्रह्मतेज परना विश्वासे ते प्रसंगे पचीस हजार लोक भेगु थयुं ज. मोटा महाराज अने तेमना समर्थ शिष्य-प्रशिष्योए तथा समर्थ क्रियाकारकोए निर्भय बनीने, संपूर्ण शुद्धि तथा विधि सावत्रीने अलौकिक उल्लासथी अंजनशलाका करी - करावी अने छेल्ला दिवसे कहे छे के वावाझोडानो तथा Jain Education national For Private & Personal Use Only ॥१३॥ www.jainelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy