SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अञ्जन प्र. कल्प ॥२०६ ॥ Jain Education I अच्चतमविरइपरायणो वि; अइपुन्नर्वतमप्पाणं । मन्नेमो जिण ! जं तुझ; मज्जणे एवमुवरिया || ४ || भदं भारहखेत्तस्स; नाह ! तं जत्थ पाविओ जम्मं । धरणी वि वंदणिज्जा; जा बहिही तुज्झ करकमलं ॥ ५ ॥ जर तुह पयसेवाए; जिणिंद ! फलमत्थि ता सया कालं । एवंविह परममहं अम्हे पेच्छया होमो || ६ ॥ ॥ इति जिनजन्माभिषेकस्तवनम् ॥ परि. १ ए ॥ परिशिष्ट नं. १-ऐ श्री जिनाद्दानबृहद्विधि :- ( पाना नं. १०० नी टिप्पण. ) अहार अभिषेकम आठ अभिषेक थया बाद जिनाहान करवामां आवे छे. ते विधान विवप्रवेशादिविधिमां आवती बृहद्विधि प्रमाणे पण थइ शके छे ते विधि नीचे प्रमाणे छे : सौ प्रथम नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली कुसुमांजलि करवी सर्वस्थिताय विबुधाऽसुरसेविताय, सर्वात्मकाय चिदुदीरितविष्टपाय । विम्वाय लोकनयनप्रमदप्रदायः पुष्पाञ्जलिर्भवतु सर्वसमृद्धिहेतुः ।। १ ।। (वसंततिलका.) ॐ ह्रीँ ह्रीँ हूँ हैं हो हः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा || त्यार बाद सूरि भगवंत ऊभा थई १. परमेष्टिमुद्रा; २ गरुडमुद्रा; ३ मुक्ताशुक्ति- एमत्रण मुद्राथी जिनेश्वरनुं आदान नीचेना मंत्रथी करे : For Private & Personal Use Only ॥ २०६ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy