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अञ्जन
प्र. कल्प
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अंतरनी वात
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संविग्न शिरोमणि महोपाध्याय श्रीमत्सकलचंद्रजी गणिकृत 'प्रतिष्ठाकल्प' सौ प्रथम आठ दायका पूर्वे श्री भीमसी माणेकजीए छपाव्यो. पछी वि. सं. २०१२मां क्रियाविधिज्ञ श्रीयुत सोमचंदभाई हरगोविंददास छाणीवाळा तथा पंडितवर्य श्रीयुत छबीलदास केसरीचंद संघवीए पूर्वना महापुरुषोनी निश्रामां थयेल अंजनशलाका विधिना बहोळा अनुभव ज्ञाननाआधारे संयुक्त प्रयासथी व्यवस्थित गोठवी प्रताकारे प्रकाशित करी. त्यारबाद पंदर वर्ष पछी वि. सं. २०२७मां श्रीयुत सोमचंदभाईए केटला सुधारा साथे फरोथी द्वितीयावृत्ति प्रकाशित करी. जोगानुजोग बराबर बीजा पंदर वर्ष बाद एज प्रतिष्ठा कल्पनी प्रत संशोधित पाठ सहित फरी प्रकाशित थह रही छे.
छतां य विधि विधान संबंधी रसना अभावे के राखी ते ते विधि योग्य जरूरो पाना शोधवा
अंजनशलाकानुं विधान छेल्लां केटलांय वर्षोथी सविशेष थवा लाग्युं छे ऊंडाणपूर्वकना ज्ञानना अभावे विधि-विधान वखते जुदी जुदी प्रतो साथै पडे छे. विविध विधिकारोना विभिन्न अभिप्रायोने कारणे क्यारेक मुंझवणभरी स्थिति ऊभी थाय छे.
तेथी शत्रुंजय डेम, केशरियाजी नगर- पालीताणा, भावनगर, साबरमती वगेरे अंजनशलाका - प्रतिष्ठा प्रसंगे संघकौशल्याधार परम पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजयनंदनसूरीश्वरजी महाराज साहेब, धर्मराजा दादा गुरुदेव परमपूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद्
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