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अञ्जन प्र. कल्प
॥१७२॥
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'परिशिष्ट नं.१-आ' तोरण बांधता बोलवानो मंत्र:-(पाना नं. १५ नी टिप्पण.)
ॐ अ-आ-इ-ई-उ-3-ऋ-ऋ-ल-ल-ए-ऐ-ओ-औ-अं-अः, क-ख-ग-घ-ङ, च-छ-ज-अ-, ट-ठ-ड द-ण, त-थ-द-ध-न, प-फ-ब-भ-म, य-र-ल-ब, श-प-स-४ नमो जिनाय सुरपतिमुकुटकोटिसंघटितपदाय इति तोरणे समालोकय समालोकय स्वाहा ॥ ॥ इति तोरणस्थापनाप्रतिष्ठामंत्रः॥
॥ परि. १-आ॥ 'परिशिष्ट नं.१-३' लघुनन्यावर्तपूजन विधिः-(पाना नं. १९ नी टिप्पण)
दस वलयवालो नन्द्यावर्तनो पट्ट होय तो विवप्रवेशविधि आदि प्रतोमा आवती विधि प्रमाणे पूजन करवू.
(१) श्री जिनबिंबनी प्राणप्रतिष्ठा वगेरे प्रसंगे श्री नन्द्यावर्तपूजन कराय छे. ते विस्तारथी करवानो विधि आचारदिनकरमा छे. संक्षेपथी करवानो विधि आ प्रमाणे छे.
(२) जो चळवित्र होय अर्थात् प्रतिमाजी स्थिर स्थापन करेला न होय-एक स्थळेथी बीजे स्थळे लइ जइ काय एम होय तो नन्द्यावर्तन आलेखन करीने तेना उपर ते विंच स्थापन करवा भने पछी आगळ जणाच्या प्रमाणे वलयक्रमे पूजन करवू.
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