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अञ्जन प्र. कल्प
॥१७३॥
RAPERSARASHTRA
(३) जो स्थरविंध होय तो आगळ वेदिका करीने अथवा भूमिपर नन्द्यावर्त स्थापन करी पूजन कर. (४) (अ) पूजनकारक अने विधिकारक भद्रासन उपर बेसीने पूजन करे. ___(ब) कर्पूर मिश्रित चंदनना सातले पथी लींपेला श्रीपर्णीना पाटला उपर कपूर, कस्तूरी अने गोरोचंद
नथी मिश्रित केसररस वडे प्रदक्षिणाना क्रमे नवखूणावाको नन्द्यावर्त आलेखबो. (क) मध्यभागथी आरंभीने बलयो अनुक्रमे बहारना भाग तरफ करवा. तेमां मध्ये नन्द्यावर्तनी जमणी बाजु सौधर्मेन्द्रनी, डाबी बाजु ईशानेन्द्रनी अने नीचे श्रुतदेवतानो स्था| पना करवी.
(५) मध्यभागनी परिधिने गोळ वेष्टन करीने तेने फरता दश वलय करवा.
१ सौधर्मेन्द्रनु स्वरूपः-वर्ण सुवर्णसमानपीत, हाथ चार, हाथीनु वाहन, वस्रो पंचरंगी, बे हाथ अंजलिबद्ध अने वीजा बे
हाथमाथी एक हाथमां अभय अने वीजा हाथमा बज्र. 31 २ ईशानेन्द्रनु स्वरूपः-वर्ण उज्ज्वळ-श्वत; वाहन वृषभनु; वस्त्र नीलु' अने रातुं, हाथ चार तेमां एक हाथमा जय, बीजा
हायमां शूळ अने चाप, वाकी बे हाथ अंजलि बद्ध. ३ श्रुतदेवतानु स्वरूपः-वर्ण श्वेत वस्त्र श्वेत; वाहन हंसनु, श्वेत सिंहासन पर बेठेली, भामंडळथी शोभित, हाथ चार तेमां बे डाबा हाथमां श्वेत कमळ अने वीणा, तथा जमणा ये हाथमा पुस्तक तथा मुक्तामाळा.
॥१७॥
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