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________________ अञ्जन प्र. कल्प ॥३०॥ Jain Education In -: अथ तृतीयदिन विधि : क्षेत्रपाल पूजनविधिः सौ प्रथम क्षेत्रपाल आह्वान नीचेना मंत्रथी करवु:-- ॐ क्लाँ क्लीँ ब्लोँ स्वाँ लाँ ह्रीँ भुवनपालाय, माणिभद्राय, क्षेत्रदेवाय, यक्षाधिपतये, गजवाहनाय, खड्गहस्ताय, पाशाद्यायुधाय, सपरिच्छदाय अत्र श्री जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे अमुकनगरे अमुकगृहे जिनबिम्बाञ्जनशलाका-प्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, पूजां गृहाण गृहाण, पूजायामवतिष्ठ अवतिष्ठ स्वाहा ॥ पछी क्षेत्रपालनुं पूजन नीचेनुं काव्य तथा मंत्र बोली करवु : क्षेत्रपाल ! जिन प्रतिमाङ्गभाल !; दुष्टान्तकाल ! जिनशासनरक्षपाल ! । तैलाहिजन्मगुरुचन्दनपुष्पधूपै - भोगं प्रतीच्छ जगदीश्वरस्नात्रकाले ||१|| (वसंततिलका) ॐ क्ष क्ष क्ष क्ष क्ष क्ष क्षेत्रपाल पूजयामि ॥ त्यार बाद नीचे प्रमाणे आसननुं काव्य तथा मंत्र वोलवो:तीक्ष्णदष्ट्र ! महाकाय !; कल्पान्तदहनोपम ! | भैरवाय नमस्तुभ्य-मनुज्ञां दातुमर्हसि || २ || (अनुष्टम् ) ॥ इति क्षेत्रपाल पूजन विधिः ॥ ॐ ह्रीँ आधारशक्तये कमलासनाय नमः ॥ For Private & Personal Use Only ॥३०॥ jainelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
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