________________
अञ्जन प्र.कल्प
॥१४३॥
RECERCORRECG
यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया।
सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥७॥ (अनु.) कही "शासनदेवयाए" करेमि० काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० नो काउ० नमो० कही--थोय आठमी-- ..उपसर्गवलयविलयन-निरता जिनशासनाऽवनैकरता।
द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ॥ ८ ॥ (आर्या) पछी “समस्त वेया० संति० सम्म०" करेमि०, काउ०, अन्नत्य०, १ नव० नो काउ० नमो० कही-थोय नवमी
सोऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे सुवैया-वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः। ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः॥९॥ (वसन्त०) पछी नवकार०, नमुत्थुणं, जावंति०, जावंत०, नमो० स्तवन अजितशांति अथवा मोटीशांति, जय वीयराय.
पछी श्रावकोए अखंड चोखा शेर सवा पांच प्रमाणनो थाळ गुरु पासे मूकवो. श्रावकोए पुष्पांजलि लइ तथा गुरुए अखंड चोखानी वे हाथे अंजलि लइ श्रीसंघ सहित ऊभा रही नीचे प्रमाणेनो मंगळ पाठ बोली श्रावकोए पुष्पांजलि तथा गुरुए चोखा उछाळवा मंगळपाठ :--
MEAAAAAAAAAOOK
Jain Education Intel
For Private & Personal Use Only
Mainelibrary.org