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भजन प्र. कल्प
॥ ११२ ॥
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इन्दागणिजमनेर - वरुण-वाऊ-कुबेर-ईसाणा । बम्भोनागुत्ति दसह - नविय सुदिसाण पालाणं ॥३॥
(आर्या) सोम-यम-वरुण वेसमण- वासवाणं तहेव पंचण्हं । तह लोगपालयाणं, सूराइगहाण य नवहं ॥४॥,, साहंतस्स समक्खं, मज्झमिणं चेव धम्मणुद्वाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणाइनवकारओ धणियं ॥५॥,, ॥ इति देववंदनविधिः ॥
पछी जयवीयराय० कहेवा |
॥ इति अदारअभिषेकविधिः ॥
नामस्थापनविधिः
* नामस्थापन कर. पत्रदान अने केशरना छांटणा करवा :
पछी नीचेat श्लोक तथा मंत्र बोल्या बाद ( फईबाए ) प्रभुजीने वस्त्राभरण पहेराववा :
चञ्चच्चारुशुचिप्ररोहविसरत्-प्रद्योतिताशामुखे;
दिव्यश्री दिवाकरद्युतिभरा - दालुप्तदृग्गोचरे ।
* नामस्थापन समये करवानी विशिष्ट विधि परिशिष्ट-नं.१ अं' मां आपेल छे.
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