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अंञ्जन प्र.कल्प
॥६२॥
द्विधा द्वादशंधा भिन्न; पूते पत्रे तपः स्वयंम् ।
निधापयापि भक्त्याऽत्र, वायव्यां दिशि शर्मदम् ॥ १ ॥ ( अनु.) पूजनमंत्र :
"ॐ ह्रीँ सम्यक्तपसे नमः स्वाहा' मंत्रथी तपपदनुं पूजन कर. (स्फटिकनी माळाथी 'नमो तवस्स' पदनो यथाशक्य जाप करवो. ॥९॥ पछी बे हाथ जोडी नवे पदनी स्तुतिरूप नीचेनुं काव्य बोलवु :निःस्वेदत्वादिदिव्या-तिशयमयतनून श्रीजिनेन्द्रान सुसिद्धान
सम्यक्त्वादिप्रकृष्टा-ष्टगुणभृत इहा-चारसारांश्च सूरीन् । शास्त्राणि प्राणिरक्षा-प्रवचनरचना-सुन्दराण्यादिशन्त-,
स्तत्सिद्भयै पाठकान् श्री-पतिपतिसहिता-नर्चयाम्यर्घ्यदानैः ॥ १ ॥ ( स्रग्धरा ) पछी सिद्धचक्रनुं चंदन, पुष्प, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदिथी पूजन नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली करवू :
॥६२॥
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