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अञ्जन प्र.कल्प
॥१३॥
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ॐ ही ऋपभाऽजित-संभवाऽभिनंदन-सुमति-पद्मप्रभ-सुपार्श्व-चन्दप्रभ-मुविधि-शीतल-श्रेयांस-वासुपूज्य-विमलाऽनन्तधर्म-शान्ति-कुंथ्वर-मल्लि-मुनिसुव्रत-नमि-नेमि-पार्श्व-वर्दमानादि तीर्थकराः परमदेवाः तदधिष्ठायकाः देवाः शातिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं जयं मङ्गलं कुरुत कुरुत पां पां वां वां नमः स्वाहा ॥
एरीते कळशो भरी चंदन-पुष्पथी सुशोभित करी धवल-मंगळ अने वाजिंत्रना नादपूर्वक कुमारिका के सौभाग्यवती स्त्रीओ पासे लेवडावी चैत्य के घरमा प्रदक्षिणा दईने पवित्र स्थाने पधरावी मंगळगीत तथा वाणित्रनो घोष करवो.
॥ इति जलयात्राविधिः ॥ त्यार बाद १०८ तीर्थजळथी कळश भरी नीचेना पृथ्वीमंत्रथी स्थापना करबो :ॐ हा भूः स्वाहा; ॐ ह्रीँ भूमिःस्वाहा; ॐ हूँ भुवः स्वाहा; ॐ हूँ मेदिनी स्वाहा; ॐ हौं पृथिवी स्वाहा
ॐ ह्रः वसुमती स्वाहा ॥ पछी क्षेत्रपाल स्थापना मंत्र बोलवोः
ॐ क्षा क्षीं झू क्षौ क्षः क्षेत्रपालाय नमः स्वाहा ॥ पछी क्षेत्रपाल पूजननी मंत्र बोलवो :-- ॐ ह्रीँ क्षा क्षेत्रपालं गन्धाक्षतजलपुष्पतैलसिन्दुरैः दीपधूपौधैः पूजयामि ।
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