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अञ्जन प्र. कल्प
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॥९१॥
विश्वेश्वर्यकार्या-त्रिदशपतिशिरः-शेखरस्पृष्टपादाः;
प्रक्षीणाशे दोषाः, सकलगुणगण-ग्रामधामान एव । जायन्ते जन्तबो य-चनसरसिज-दन्द्रपूजान्विताः श्री
-हन्तं स्नात्रकाले, कलशजलभृतै-रेभिराप्लावयेत्तम् ॥ २ ॥ (गधरा) ॐ हाँ हाँ है हैं हो : अर्हते तीर्थोदकेन अष्टोत्तरशतोषधिसहितेन षष्टिलककोटिप्रमाण-5 कलशैः स्नापयामीति स्वाहा ॥ पछी-मेरुशृङ्गे च यत्स्नात्र जगभर्तुः सुरैः कृतम् । बभूव तदिहास्त्वेत-दस्मत्करनिपेकतः ।। (अनु.) ___ आ कोक बोला ए रीने वीजा २४८ अभिषेक करता, छेल्ले ईशानेन्द्र प्रभु जी ने खोलामा ले अने सौधर्मेन्द्र
भर्नु रूप करी नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोल्या बाद अभिषेक करे:-- चतुर्वृषभरूपाणि, शकः कृत्वा ततः स्यम् । शुङ्गाष्टकारत्क्षीरे-करोदभिषेचनम् ॥ १ ॥ (अनु.)
ॐ ह्रां ह्रीं अर्हते क्षीरेण स्नापयामीति स्वाहा ।। पछी अष्टप्रकारी पूजादिक करी रूपाना चोखाथी प्रभु पासे अष्टमंगळ पूरी नीचे प्रमाणे स्तुति करवी:--
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