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________________ अञ्जन प्र. कल्प ॥ १४१ ॥ ૩૬ Jain Education Inter पछी ते बलि धूप, वास अने फल सहित बरी दश दिक्पाल अने नवग्रहना नाम लइ लड् नांखवो. पछी श्रावको ने हाथमां फूल लइ नीचेना मंत्री भगी बलिदान कर : “ ॐ ह्म्याँ गंधाह्मः प्रतीच्छन्तु स्वाहाः ॐ ह्म्यौं धूपं भजन्तु स्वाहा, ॐ ह्म्ये भूतबलिं जुषन्तु " स्वाहा 11 पछी श्रावको कुसुमांजलि लइ नीचेना मंत्रथी त्रणवार बिंब सामे नांखवी : “ॐ ह्म्यै सकल सवलोकमवलोकय भगवन्नवलोकय अवलोकय स्वाहा " ॥ पछी श्रावको पहेला करेली सर्व पूजा दूर करवी; तेमज चंदन, केशर, फूल, आंगी, वस्त्र, आभरण आदिकथी सघळी नवी पूजा करवी. तेमज आगळ करेलं सर्व वलिदान पण दूर कर दान देवुं तथा बीजोरां आदि फळ, लाड, सुखडी, मेवो, मुखवास वि. नैवेद्य मूकवं. पछी उतारण विधिपूर्वक कपूर, घी अने साकरथी आरति अने मंगळ दीवो करवो. ॥ इति निर्वाणकल्याणकविधि || देवबंदन : पछी गुरु भगवंते संघ साथे चैत्यवंदनथी त्रण थोय सुधी का बाद “ प्रतिष्ठादेवताविसर्जनार्थं काउ० करुं ' For Private & Personal Use Only ॥ १४१ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
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