SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ R अञ्जन प्र.कल्प ॥१४॥ चक्रे देवेन्द्रराजैः, सुरगिरिशिखरे, योऽभिषेकः पयोभि नृत्यन्तीभिः सुरीभि-ललितपदगमं, तूर्यनादैः सुदीप्तैः । कर्तु तस्याऽनुकारं, शिवसुखजनकं, मन्त्रपूतैः सुकुम्भ __-विम्व जैनं प्रतिष्ठा-विधिवचनपरः, स्नापयाम्यत्र काले ॥ १ ॥ (स्रग्धरा) पछी चैत्यवंदन कर. पछी नीचेना भूतबलिमंत्रथी बलिदान मंत्र : भूतबलिमंत्र :-ॐ नमो अरिहंताणं ॐ नमो सिद्धाणं; ॐ नमो आयरियाणं; ॐ नमो उवज्झायाणं; ॐ नमो लोए सब्यसाहणं, ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ नमो चारणाइलद्धीणं, जे इमे किन्नर-किंपुरुस-महोरग-गरुल-सिद्धगंधव-जक्ख-रक्खस-पिसाय-भूय-पेय-साइणि-डाइणिप्पभिइओ जिणघरनिवासिणो नियनियनिलयठिया पवियारिणो सन्निहिया असन्निहिया य ते सव्वे विलेवण-ध्रुव-पुप्फ-फल-पईव-सणाहं बलिं पडिच्छंता, तुहिकरा भवन्तु, शिवंकरा भवन्तु, संतिकरा भवन्तुः मुत्थं जणं कुव्वंतुः सवजिणाणं सन्निहाणपभावओ पसनभावत्तणेण सव्वत्थ रक्खं कुणंतुः सव्यस्थ दुरियाणि नासंतु; सन्यासिपमुवसमंतु, संति-तुट्टि-पुष्टि-सिव-सुत्थयणकारिणो भवंतु स्वाहा" ॥ ECRUARGASCIRECIRCREECRE 1॥१४॥ Jain Education in a For Private & Personal use only mjainelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy