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________________ अञ्जन प्र. कल्प ॥१०॥ श्रीमान् सकलचन्द्रजी महाराज माटे एम कहेवाय छे के तेओं कपडवणजमां बिगजता हता त्यारे, आजे होळीचकलाना 'पंचना उपाश्रय' बाळा विस्तार तरोके जाणोता भागमा तेओ एकवार का उसग्ग धरीने ऊभा ह्या. काउसम्ग अभिग्रहवाको हतो, ने आजे शो अ भेग्रह करवो ?-एवो विचार को त्यां ज, तेमनी नजरे, पाछळना महोल्लामा (कुंभारवास होबाथी ) पसार थता गधेडाओ उपर पड़ी, तेमणे अभिग्रह कयों के गधेडो भूकवानो अवाज न संभळाय त्यां सुधी मारो का उग. तेओ तो काउसग्गमा स्थिर थइ गया; पण योगानुयोग एवो बन्यो के पेला सेंकडो गधेडाओना टोळाने कुंभार लोको काम अंगे बहार लइ जइ रह्या हता, ने तेओ तो तरत ज चाल्या गया ! हवे त्यां एक पण गधेडो रह्यो नहि. अने महाराजनी कसोटी एवी तो आकरी थइ के बराबर त्रण दिवस पछी ए टोळ पार्छ आव्यु ! पण प्रतज्ञा एटले प्रतिज्ञा ! एमां कोइ संकल्प-विकल्प केवो ? उपाध्य यजी महाराजे पूग त्रण रात दिवस काउसग्ग ध्याने ऊभा ऊमा पसार कर्या, अने ए समयगाळामां तेओए विशिष्ट शास्त्रीय संग-रागिणीमय " सत्तरभेदी पूजा" नी अलौकिक रचना करी. पोतानी ए रसमस्त अने भक्तिभरपूर रचनामां आ आखीये घटनानो निर्देश आपती एक पंक्ति तेओए गूंथी दीधी छे - "सकल मुनीसर काउसग्ग ध्याने" अने आया प्रामाणिक, तपस्वी, भक्तिवंत, पवित्र पुरुषे सांस्तो अने निर्मेलो “प्रतिष्ठाकल्प" शासनमा, संघमां अने गच्छमां निर्विवाद स्थान पामे, तेमां शी नवाइ होय ! ___आ " प्रतिष्ठाकल्प" हजी थोडां वर्षो पहेलां सुधो तो आपणने हस्तलिखित प्रतिओना स्वरूपमा ज उपलब्ध हतो. सामान्य रीते, प्राण प्रतिष्ठान विधान श्रीआचार्यमहाराजोना ज हाथे करवान होवाथी, एमना सिवाय आ " कल्प" नो उपयोग बोजाओने माटे ॥१०॥ Jain Education Intem For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
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