________________
अञ्जन प्र.कल्प
॥२८॥
त्रीजा वप्रमा:-चारे तुंवरुनी 'ॐ तुम्बरवे नमः' मंत्रथी अने चार तोरणोनी 'ॐशान्तितोरणेभ्यो नमः, ॐ भूतितोरणेभ्यो नमः, ॐ बलतोरणेभ्यो नमः, ॐ आरोग्यतोरणेभ्य नमः' मंत्रथी पूजा करवी. | पछी १ धर्म, २ मान, ३ गज अने ४ सिंह आ चार वजोनी 'ॐ धर्मध्वजाय नमः, ॐ मानध्वजाय नमः 'ॐ गजध्वजायनमः, ॐ सिंहध्वजाय नम:' आ मंत्रोथी, तेमज दिशाओमां 'परविद्याः क्षः फुट' अने विदिशा
ओमां 'परमन्त्राःक्षः फुट' नी तेज मंत्रथी अने इन्द्रादि सर्वनी पूजा करवी. ___ इन्द्रपुरनी 'ॐ पृथ्वीमण्डलाय नमः' मंत्रथी; चार पूर्णकलशोनी ॐ पूर्णकलशाय नमः' मंत्रथी अने | वायुभवननी 'ॐ वायुमण्डलाय नमः' मंत्रथी पूजा करवी..
पछी त्यां पांच प्रकारना पक्वान्न मूकवा. दिशाओ अने विदिशाओमां बलिबाकुळा उछाळवा. __पछी देववंदन करवुः-प्रथम प्रस्तुत जिन के 'ॐ नमः पार्श्वनाथय'र्नु चैत्यवंदन कही 'अहंस्तनोतु.'; 'ॐ18 मिति मन्ता.' 'नवतत्त्वयुता.' अने 'श्री शान्तिः श्रुनशान्तिः ' आ चार स्तुति कही "श्री श्रुतदेवता आराधनाथ" | करेमि काउ० वंदण० अन्नत्थ० १ नव० नो काउ० पारी नमो०
वद वदति न वाग्वादिनि !, भगवति कः ? श्रुतसरस्वति ! गमेच्छः ।
रगत्तरङ्गमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥ ५ ॥ (आर्या)
EGAES ARKAECCES
॥२८॥ Cowainelibrary.org
Jain Education
For Private & Personal Use Only