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अञ्जन
प्र. कल्प
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“ ॐ ह्रीँ ह्रीँ परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्रनदी - नग-तीर्थादिमृच्चूर्णसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा " ॥ इति चतुर्थस्नात्रम् ||४||
-: पांच (सदौषधि) स्नात्र:
सहदेवी वगेरे औषधचूर्ण करी पाणीमां नांखी कळशो भरी नीचेना श्लोक अने मंत्र बोली अभिषेक करवो :सहदेवी शतमूली, शङ्खपुष्पी शतावरी ।
कुमारी लक्ष्मणाऽभिश्र, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥ १ ॥ (अनु.) सहदेव्यादिसदौषधि-वर्गेणवर्तितस्य विम्बस्य |
संमिश्रं विम्वोपरि, पतज्जलं हरतु दुरितानि ॥ २ ॥ ( अनु० ) परमाते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्रसह देव्यादिसदौपधिचूर्णसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा ॥ इति पंचमस्नात्रम् ||५||
-: छ (प्रथमाष्टकवर्ग ) स्नात्र:
उपलोट वि. आठ वस्तुओनुं चूर्ण करी पाणीमां नांखी कळशो भरी नीचेना श्लोक अने मंत्र बोली अभिषेक करवो :
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