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________________ अञ्जन प्र. कल्प ॥२९॥ 3 त्यार बाद समवसरण स्थापन, निर्वाण कल्याणक, विसर्जनादि विधि यथावत् राखेल छे तेमज प्राचीन प्रतिष्ठाविधि; जिनबिंबपरिकरप्रतिष्ठा विधि; कळशा रोपण तथा ध्वजारोपण विधि मुद्रित प्रत प्रमाणे आपल छे. परिशिष्ट-- १मां मूधिमा पूरक बनती विधियो आपो छे. परिशिष्ट - २मां-ग्रह- दिक्पाल - अष्टमंगल स्थापना - रचनादिः परि-३मां मंडप - वेदिकानुं प्राचीन स्वरूप परि-४ मां विविध मुद्राओनुं स्वरूप; परि ५ मां जळयात्राना उपकरण परि ६ मां अंजनशलाका विधिमा उपयोगी उपकरण; परि-७ मां अढार अभिषेकमां खास उपयोगी औषधिओ अने परि-८ मां ३६० करियाणानी यादी बतावी छे. परिशिष्ट - ९ मां पू. पं. श्री शीलचंद्रविजयजी गणि महाराजे हस्तप्रति उपरथी उतारो करी मोकली आपे पं. श्रीरंगविजयजी महाराजे - वि-सं. १८७९ नो सालमां भरुच मुकामे सवाइचंद खुशालचंदे श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवंतना प्रतिमाजी भरावी तेनो अंजनशलाका करावी ते प्रसंगे दसे दिवसनी विधि प्रतिदिन जे रीते थइ तेनुं स्पष्ट विवरण करतु-१९ ढालनुं श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ पंचकल्याणक गर्भित प्रतिष्ठाकल्पनुं स्तवन आपेज छे. प्रमाद के मुद्रण दोषने कारणे जे कंह अशुद्धि रही जवा पामी छे ते शुद्धिपत्रकमां आपेल छे. तो अवश्य शुद्धिपत्रक वांचीने ज प्रतनो उपयोग करवो. आ प्रमाणे विधिज्ञ-अनुभववंतना सलाह- सूचनानुसार नत्र परिशिष्ट सहित प्रतिष्टकल्पनी आ प्रत तैयार थइ छे. छतांय कंक क्षति रही गइ होय तो ते अमारा प्रमादने लीधे हशे कंइ पण सलाह- सूचन जरूरी लागे तो सुज़रुरुषोने करवा विनंती छे. आ प्रत तैयार करवामां सहायक पूज्य वडील गुरुभगवंतो- मुनिभगवंतोने पुनः स्मरण करवा पूर्वक आ प्रत अंजनविधानमां सविशेष उपयोगमां आवे तेवी अभ्यर्थना । - आ. श्री विजय अशोकचंद्रसूरि पादरेणु- सोमचंद्र. Jain Education Ional For Private & Personal Use Only ॥२९॥ www.jainelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
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