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अञ्जन प्र.कल्प
पूज्योनी अनुमति तथा मार्गदर्शन मेळवबापूर्वक अने समाज ना धुरीण क्रिया कारक श्रावकोनी साथे विचार विनिमय करवापूर्वक प्रस्तुत
" प्रतिष्ठा कल्प"नो एक अधिकृत बाचना तैयार करी, तेनो दिवसबार कम गोठवीने मुद्रित करी. ए प्रकाशन पछी तो अंजनशलाकार्नु प्रमाण खूब वच्यु. छेल्लां थोडांक वर्षोना गाळामां, एक वर्षमा एक आचार्यदेवना हाथे, सरेराश एक अंजनशलाकाथी लइने पाछळनां पांच-सात के दश वर्षथी तो लाभग एकेकना हस्ते त्रा-चार अंनन धानो थतां संभळ य छे. अः संयोगोमा क्रियाकारोनी खेंच पडी, तो ते पण हवे मोटा प्रमाणमां उपलब्ध छ; अने प्रानी खेंच पडतां उपर्युक्त प्रकाशन- यथावत् पुनर्मुद्रण पण ताजेतरमा थयुं छे, जे पण आजे तो अलन्यप्राय छे.
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जिज्ञासु अने अभ्यासोओना मनमा केटला वख तथा एक विचार प्रवर्ततो रह्यो छे के प्रगट थयेली प्रतमा हजी पण केटलीका क्षतिओ निवारीने वधु सुग्रथित संकलन, प्रतना मुद्रण पछी थयेला व्यवहारु अनुभवोना आधारे, थर्बु जरूरी गणाय. अलबत्त, मूळभूत रीते कोइ ज फेरफार के सुधारा-उमेरा न कराय, ने नथी ज थया; छता, केट लीक व्याकरणनो अने छंदशाबनी अशुद्धिओ सरळनाथी निवारी शमाय तेवी हती; उपरांत, प्रतिष्ठा कल्पनी, महान आचार्य देवोनी नजरतले पसार श्ये ली ने तेमना हाथे शोधायेली हस्तलिखित प्रति मोमां केटलुक वधु शुद्ध अने समुचित हत;-आ बधांनो उपयोग करीने नवेसरथी आ प्रत तैयार करवामां आवे, अने तेमां मूळमां नहि, किंतु टिप्पणीमां के परिशिष्टोमां अंजनविधानमा प्रयोजाती केटलीक बाबतोनो समावेश, सूचनो साथे करवामां आवे तो एक सुसंकलित अने अधिकृत प्रकाशन थाय.
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