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आशीर्वचन
'श्री प्रतिष्ठाकस' ग्रन्थना संपादन प्रसंगे शुं लखg ? स्थापनानिक्षेपे, अरिहंत परमात्मानी त्रिकरण विशुद्धिथी करवामां आवतां विधि विधानो सर्वना श्रेय माटे बने छे.
तेवी श्रेयस्कर मार्गे गति करनारने मार्गदर्शकनी गरज सारनार आ ग्रन्थना संपादन निमित्ते गणि श्री सोमचंद्र विजयजीए जे प्रथम प्रयान कों ते प्रशस्य तो छे, परंतु ग्रन्थ संपादन माटे ग्रन्थनी शुद्धि-अशुद्धि के पाठ-पाठांतर मेळयधामा दत्तचित्त बनवू पडे छे. अने ते परिश्रमसाध्य होय छे.
हुं तो एक इच्छुछु के गणिवरश्री पोताना जीवनमां विधि ग्रन्थोना जाण बनवा साथे परमात्म भावमा तद्रूप बनवा पुरुषार्थ करे अने ते अनुभूतिथी अन्यने जाण करी परमात्म स्वरूप पामवानो एक अनुभवसिद्ध मार्ग चींचे. एज.
_ वि. चंद्रोदयमूरि ता. २१-३-८६ -पालीताणा.
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