________________
अञ्जन प्र. कल्प
||२७६॥
LETRARHREPPURSAIRAGHISOARA
श्री शुभ आरजशोष प्रमुख जिन, थापे दस गणधार रे, ___संघ चतुर्विध तीरथ थापे, विधिपुरवक व्यवहार केवलज्ञानकल्याणक उछव, करी इम रंगभरेण रे,
विधिकारक विधि आगे कीजे, गुरुसंगे हरखेण फूलवासनी वृष्टि करीने, करीये धूप प्रसस्त रे,
देववंदन करी पूछीये, पडिमाना अंग समस्त अट्ठोत्तरशत काव्य उच्चारी, विरची कलस विचित्त रे, .
एक सो आठ प्रमाणे विधिये, करीये स्नात्र पवित्त चैत्यवंदन करीने हवे गुरुजी, मंत्रित करे बलिदान रे,
ग्रह दिगपालने विधिस्युं दीजे, लेइ तेहनां अभिधान प्रभु सनमुख कुसुमांजली दीजे, मंत्रे करी त्रण वार रे,
___ चंदन केसर आदे नूतन, पूजा करे मुखकार बलि देइ बीजोरां मेयो, लाडु मुखडी सार रे,
मुखवासादिक थापिये, प्रभु आगल मनोहार
२७६॥
Jain Education in
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org