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________________ अञ्जन प्र. कल्प 116011 Jain Education Inte बलियाकुलाः - - 'ॐ ह्रीँ क्ष्वीँ सर्वोपद्रवं विम्बस्य रक्ष रक्ष स्वाहा' ए मंत्रथी ऋण वार वलिवाकुळा मंत्री प्रतिष्ठा स्थानेथी पाणी सहित उडाडवा तेज धूप, चंदन, पुष्प, अक्षत वि. उछाळवा. कुसुमांजलि:-- श्रावकोए दरेक नवीन बिंबो उपर नीचेनो श्लोक बोली कुसुमांजलि प्रक्षेप करवो:-- अभिनवसुगन्धिविकसित- पुष्पौघभृता सुगन्धधूपाढ्या । विवोपरि निपतन्ती सुखानि पुष्पाञ्जलिः कुरुताम् || (आर्या) विघ्नोत्त्रासन तथा जलाच्छोदनः -- त्यार बाद गुरुए बने बचली आंगळीओ ऊंची करीने नवीन विबोने रौद्र दृष्टिथी तर्जनी मुद्रा देखाडवी. 46 पछी श्रावको डावा हाथमां जळ लईने “ उम्हां म्लो " ए मंत्र बोली सर्व नूतन जिनविवोने आच्छादन कर. कवचकरण तेमज दिग्बंधन:-- गुरु भगवंते 'ॐ ह्रीँ वीँ सर्वोपद्रवं विम्बस्य रक्ष रक्ष स्वाहा' ए मंत्र भणी त्रिंबोना दृष्टिदोष निवारवा वज्रमुद्रा; गरुडमुद्रा तथा मुद्गरमुद्राथी त्रण वार कवच कर. तेज तेज मंत्री दिग्बंधन कर. For Private & Personal Use Only ||८०|| inelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
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