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________________ अञ्जन प्र.कल्प ॥२१९॥ EGERESS हाथनी होय तो तेने योग्य प्रतिष्ठामंडप अनुक्रमे ८-९-१० हाथ लांबो-पहोलो होवो जोइये. ४-५-६-७-८-९ हाथनी प्रतिमा होय तो मंडप बे हाथनी वृद्धिथी एटले अनुक्रमे १२-१४-१६-१८-१९-२०-२२ हाथ लांबो पहोलो होवो जोइये अथवा १ थी ९ हाथ सुधी प्रतिमाने योग्य मंडप १२ हाथथी लइने बे वे हाथ वधारता २८ हाथ सुधीनो मंडप जिनालयनी आगल करवो. (९ हाथथी मोटी प्रतिमा होती नथी.) अने त्यार बाद प्रतिष्ठामंडपनी पूर्व के ईशान दिशामां स्नानमण्डप अधिवासनामंडपनी लंबाई-पहोलाईथी अडधा मापनो करवो. तोरणोनी ऊंचाई मंडपमा स्थापित थनार प्रतिमा जो १-२-३ हाथनी होय अने मंडप तेने अनुरूप बनावेल होय तो तोरगो अनुक्रमे ५-६-७ हाथ ऊंचा होवा जोइये-प्रतिमा जो तेथो मोटा होय तो ७ हाथ उपर ८ अंगुल, १२ अंगुल विशेष ए रोते लेवा. पूर्वादि दिशाना तोरणो वड, उंबर, पारस-पीपल अने पीपलमाथी बनावेला अने शांति-भूति-बल-आरोग्य नामना होय छे. तेमनी ते ते नामयुक्त मंत्रोथी पूजा करी, तेनी बे वे शाखाओ अनुक्रमे मेघ-महामेघ, काल-नील; जल-अजल, अचल-भूलित नामनी राखी नामयुक्तमंत्रोथी पूजी-चारे द्वारो उपर श्वेत, रक्त, नील, पीतवर्णनी ध्वजाओ रची पूजी सन्मुखदरवाजेथी प्रवेश करवो. आरीते मंडप-वेदिकानुं विशिष्ट वर्णन विविधप्रतिष्ठाकल्पोमां आवे छे, किंतु वर्तमानकाळमां तो स्थाननी अनुकूलता, नूतनबिंबोनी संख्या अने गुरुभगवंत तथा विधिकारकनी सूचनानुसार मंडप-वेदिकानी रचना थाय छे. लंबाईपहोलाई बने विषम (एकी) संख्यामां लेवी. शुभदिवसे तथा शुभसमये बनाक्वानो प्रारंभ करी महोत्सवना प्रारंभमां मंगलमुहूर्ते तेना उपर प्रभुजी पधराववामां आवे छे. EERDES २१९॥ Jain Education mentional For Private & Personal use only wind.jainelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
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