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________________ अञ्जन प्र. कल्प ॥८६॥ रक्षापोटली; अरीठानी माळा तथा जवनी माळा पहेरावधानी विधि: पछी दृष्टिदोष निवारण माटे नीचेना मंत्रथी मत्रित पंचरत्ननी रक्षापोटली नवीनवियना जमणां हाथनी आंगलीओमां बांधवी. तेमज कंठमा अरीठानी माळा तथा जवनी माला पहेरायवी. मंत्र:-"ॐक्षा क्षी श्री स्वाहा" पछी जळयात्राथी लावेला जळने पवित्र जळकुंडीमां भरी तेमां वास, चंदन, पुष्प आदि नांखी “ॐ हीं नमः" ए मंत्रथी जलदर्शन कर तथा धूप, दीप, गीत, गान, नाटक विगेरे करवू. ॥ इति दिक्कुमारी महोत्सवः ॥ -: अथ इन्द्राणी महोत्सव :प्रभुजीने तिलकः-- नीचेना बे श्लोको तथा मंत्र बोल्या बाद इन्द्राणीए कुंकुमथी नवीन विंचना भाल उपर तिलक करवुः-- श्रीन्द्राण्याद्यग्रमहिष्यः, सामानिकैश्च संयुताः । अंगरक्षकदेवीभिः, समागता जिनगृहे ॥१॥ (अनु.) | तारा तिलोत्तमा, तारू-मनोवेगा च मोहिनी। सुन्दरी त्रिपुरा चैव, माना मानवती मुदा ॥२॥ (अनु.) __“ॐ नमो जिणाणं, मरणाणं, मंगलाणं, लोगुत्तमाणं, हाँ हाँ हूँ हूँ हौ हुः असिआउसा त्रैलोक्यललामभृताय अहंते नमः स्वाहा" ॥ Jain Education anal For Private & Personal Use Only D ainelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
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