SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अञ्जन प्र. कल्प ॥ १९४॥ Jain Education saritat ericaran मंत्र प्र तेष्ठाकल्पमां आवे छे. परंतु स्थापना पहला इन्द्राणीने कङ्कणादि आभूषणो पहेरावता बोलवानो मंत्र आवतो नथी. तो कङ्कणादि आभूषणो वासक्षेपथी मंत्रित करी नीचेना मंत्रथी पहेराववा: - ( पाना नं. ७०नी टिप्पण) onal ॐ ह्रीँ इन्द्राण्यै कङ्कणादिकषोडशाभूषणानि परिधापयामीति स्वाहा ॥ ॥ इन्द्र-इन्द्राणीने यज्ञोपवीतादिक धारण करावता - बोलवाना विशिष्ट मंत्रो । परि. १ ऋ ॥ ॥ परिशिष्ट नं. १ ऋ मात-पितानी स्थापनानी विशिष्ट विधिः - (पाना नं. ७०नी टिप्पण) मात पितानी स्थापनानी विधि प्रतिष्ठाकल्पमां आवती नथी परंतु ते विधि प्रचलित छे. तो आ रीते करावी शकाय. प्रथम मात-पिताने धारण करवाना मींडलादि आभूषणो वासक्षेपथी मंत्रित करी नीचेना मंत्रथी पहेराववा: ॐ ह्रीं भगवतः पित्रे मुकुटादिकं परिधापयामीति स्वाहा । ॐ ह्रीं भगवतो मात्रे कङ्कणादिकं परिधापयामीति स्वाहा । त्यार बाद बन्नेना मस्तके सूरिमंत्री वासक्षेप करी नीचेना मंत्रथी मात-पिता तरीके स्थापना करवी:ॐ ह्रीं भगवतो माता- पितरौ परिकल्पयामीति स्वाहा ॥ ॥ इति मात-पितानी स्थापनानी विशिष्ट विधिः । परि. १ ऋ । For Private & Personal Use Only ॥१९४॥ www.jainelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy