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________________ अञ्जन प्र. कल्प ॥७१॥ Jain Education Int मात पितानी कल्पना करे.) वेदिक उपर स्वस्तिकः- 99 ॐ ह्रीँ नमो भगवती विश्वव्यापिनो हाँ ह्रीँ हूँ हूँ हीँ हू सिंहासने स्वस्तिकं पूरयामीति स्वाहा ए मंत्र ण वार कही इन्द्राणीना हाथे धवलगीतसहित वेदिका उपर पांच स्वस्तिक कराववा. अंगन्यासः -- पछी नीचे आपला मंत्रोथी ते ते अंगो पर न्यास करवोः -- (त्रण वार) मंत्रो न्यास करवाना अंगो मस्तक पर मुख पर हृदय पर नाभि पर बने पग पर सर्व अंग पर ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं ह्राँ शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं ह्रीँ वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं हूँ हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीँ नमो उवज्झायाणं हूँ नाभि रक्ष रक्ष स्वाहा | ॐ ह्रीँ नमो लोए सव्व साहूणं ह्रीँ पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा | ॐ ह्रीँ नमो ज्ञान - दर्शन - चारित्र तपांसि हूः सर्वाङ्ग रक्ष रक्ष स्वाहा । करन्यासः -- पछी नीचेना मंत्रोथी हाथना ते ते अवयवो द्वारा करन्यास करवो: - - (त्रण वार ) For Private & Personal Use Only ॥७१॥ ainelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
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