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अञ्जन 15 साथै मंत्रथी अभिमंत्रित करायेला स्नालथी अंढार स्नात्रो करवा. ते आ प्रमाणे :प्र.कल्प
- पहेलं (हिरण्योदक ) स्नात्र :॥९४॥ सुवर्णना चूर्णथी (सोनाना वरख मिश्रित न्हवणी ) चार कळशो भरी ‘नमोऽर्हत् ' कही नीचेना श्लोक बोलवा :- |
सुपवित्रतीर्थनी रेण, संयुतं गन्धपुष्पसंमिश्रम् ।।
पततु जलं विम्बोपरि, महिरण्य मन्त्रपरिपूतम् ॥ १ ॥ (आर्या) || सुवर्णद्रव्यसम्पूर्ण, चूर्ण कुर्यात्सुनिर्मलम् । ततः प्रक्षालनं वाभिः, पुष्पचन्दनसंयुतैः ॥२॥ (अनु.) 15 ॐ हाँ हाँ परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पाक्षतधूपसंमिनस्वर्ण चूर्णसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा ॥ ६ ए मंत्रोच्चार पूर्वक स्नात्र करी विवने तिलक, पुष्प, बास, धूप वगेरेथी पूजन करवू. आ रीते दरेक स्नात्र वखते कर.
॥ इति प्रथमस्नात्रम् ॥१॥
- वीजु (पंचरत्नचूर्ण) स्नात्र :मोती, सोने, ॐ, प्रवाल अने तांड ए पंचरत्ननु चूण करी उपरनी जेमज कुंडीमां वासचंदनपुष्पवाळा १ अढार अभिषेकमा उपयोगी खास औषधीओनी यादी माटे परिशिष्ट नं. ७ जुओ. ।
आ अढार अभिषेकमां बियप्रवेशादि विधिमा आवती वृहविधि प्रमाणे पण कगवी शकाय छे. ।
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॥९४॥
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