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प्र.कल्प
॥१४८॥
पछी सुगंध धूप वि. थी अष्टप्रकारी पूजन करवू. आरती-मंगळ दीवो तथा ध्वजारोपण करवू. पछी चैत्यवंदन करवू 5 अने स्तवननी जग्याए शांति कहेवी.
पछी पक्यान्न वि. नैवेद्य अने फळादिथी चित्रविचित्र पूजा करवी अने प्रतिमास्थापन पछी " लघुशांति, मोटी| शांति, अजितशांति; भयहर उवसग्गहरं; थुणिमो केवलि० अने तिजयपहुत्तस्तोत्र भणवा अने अठ्ठाइ महोत्सव करवो..
चौदपूर्वी--पंचमश्रुतकेवळी श्रीभद्रबाहुस्वामीए विद्याप्रवादपूर्वभांधी उद्धृत प्रतिष्ठाकल्पमांथी श्रीजगच्चन्द्रसूरीश्वरे जे प्रतिष्ठाकल्प उद्धर्यो हतो तेना आधारे आ प्रतिष्टाकल्प वाचक श्रीसकलचंद्रगणिए रच्यो अने ते पहेलाना-भट्टारक श्रीहरिभद्रसूरिकृतः हेमाचार्यकृत, श्यामाचार्यकृत, भट्टारकगुणरत्नाकरसूरिकृत प्रतिष्ठाकल्पोनी साथे श्रीविजयदानसूरीश्वर समक्ष मेळवी शोधन कयु.
॥ समाप्तः श्रीसकलचन्द्रजीकृतप्रतिष्ठाकल्पः॥
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