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अञ्जन 1.कल्प
॥१०॥
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"ॐ ह्रां ह्रीं परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसामाप्रयंग्वादिसर्वोपधिचूणसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा ॥
॥ इति अष्टमस्नात्रम् ॥८॥ ___ त्यार पछी गुरु उभा थई-परमेष्ठिमुद्रा, गुरुडमुद्रा अने मुक्ताशुक्तिमुद्रा ए त्रण मुद्राथी नीचेना मंत्रद्वारा | है जिनेश्वरनुं आह्वान करे.
आहानमंत्र:-"ॐ नमोऽहत्परमेश्वराय, त्रैलोक्यगताय, अष्टदिक्कुमारीपरिपूजिताय, देवेन्द्रमहिताय, देवाधिदेवाय, दिव्यशरीराय, त्रैलोक्यपरिपूजिताय आगच्छ आगच्छ स्वाहा" ॥
-नवमुं (पंचगव्य अथवा पंचामृत ) स्नात्र:| पंचामृतना कळश भरी नीचेना श्लोक तथा मंत्र बोली अभिषेक करयो :
जिनबिम्बोपरि निपतन, घृत-दधि-दुग्धादिद्रव्यपरिपूतम् ।
दर्भोदकसंमिश्र, पञ्चगवं हरतु दुरितानि ॥ १ ॥ ( आर्या ) वरपुष्पचन्दनैश्च, मधुरैः कृतनिःस्वनैः । दधि-दुग्ध-घृतमित्रैः, स्नपयामि जिनेश्वरम् ॥२॥ (अनु.) १ अहीं जिनाहयान अढार अभिषेक बृहविधिमां आयती विधि द्वारा पण थई शके छे. ते परिशिष्ट नं. १-ऐ मां आपेल छे.
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॥१००॥
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