________________
मुद्राराक्षस नाटक में अर्हन्त-वन्दना
प्राकृत - सासण मलिहंताणं पडि बज्जहमोहवाहि वेज्जाणं ।
___जेमुत्तमात्त कडुग्रं पच्छापत्थं मुपदिसन्ति ॥ १८ ॥ संस्कृत-शासनमहतां प्रतिपद्यध्वं मोहव्याधि वैद्यानां । ये मुहुर्तमानं कटुकं पश्चात्पथ्यमुपदिशन्ति ॥ १८ ।।
-मुद्राराक्षस नाटक चतुर्थोऽङ्क पृ० २१२ अर्थात्-मोहरूपीरोगके इलाज करनेवाले अर्हन्तों के शासन को स्वीकार करो जो मुहुर्तमात्र के लिये कडुवे हैं किन्तु पीछे से पथ्य का उपदेश देते हैं। प्राकृत-धम्म सिद्धि होदु सावगाणामृ । संस्कृत-धर्म सिद्धिर्भवतु श्रावकानाम् ।
-मुद्राराक्षस नाटक चतुर्थोऽङ्क पृ० २१३ अर्थात-श्रावकों को धर्म की सिद्धि हो । प्राकृत-अलहंताणं पणमामि जेदे गंभीलदाए बुद्धीए ।
लोउत्त लेंहि लोए सिद्धि मग्गेहि गच्छन्दि ॥ २ ॥ संस्कृत-अर्हतानां प्रणमामि येते गम्भीरतया बुद्धे । लोकोत्तरैलॊके सिद्धि मार्गच्छन्ति ॥ २ ॥
-मुद्राराक्ष स नाटक पंचमोऽङ्क पृ० २२१ अर्थात्-संसार में बुद्धि की गंभीरता से लोकातीत (अलौकिक) मार्ग से मुक्ति को प्राप्त होते हैं उन अर्हन्तों को मैं प्रणाम करता हूँ।
8. For Various asbourities that Jin or Jinendra is Called
'Arhant', see, Page 45. २. The householder Jains are called 'Shravaga'
-Jain Gharist P. 3.
[४७
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com