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विष्णु पुराण में जैन धर्म की प्रशंसा
कुरुध्वं मम वाक्यानि यदि मुक्तिममीप्सथ । अर्हध्वं धर्ममेतंच मुक्ति द्वारमसंवृतम ॥ ५ धर्मोविमुक्तो रॉय नै तस्मादपरोवरः । अत्रैवावस्थिताः स्वर्ग विमुक्तिवागमिष्यथ ॥ ६ ॥ अहध्वं धर्ममे तंच सर्वे यूयं महावला । एवं प्रकारैर्वहुभि युक्तिदर्शनचितैः ॥ ७ ॥
-विष्णुपुराण', तृतीयांश, अध्याय १७. अर्थात्-यदि आप मोक्ष-सुख के अभिलाषी हैं तो 'अहंत मत (जैन धर्म ) को धारण कीजिये, यही मुक्ति का खुला दरवाजा है। इस जैन धर्म से बढ़ कर स्वर्ग और मोक्ष का देने वाला और कोई दूसरा धर्म नहीं है।
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१. विष्णु पुराण में जैन धर्म की अधिक प्रशंसा जानने के लिए देखिये-"जैन
धर्म और हिन्दु धर्म" खंड ३ । २ अर्हन्त = अरी [शत्र हंत [नाश करने वाला कर्म रूपी शत्रु को नाश करने
वाले अर्हन्त कहलाते हैं। [क] हिंदी विश्व कोश [कलकत्ता] अर्हन्त = सर्वज्ञ, जिनेन्द्र, जिन, जैनियों के
उपास्य देवता । [ख] हिंदी शब्द सागर कोश [काशी] अर्हन्त = जैनियों के पूज्य देवजिन | [ग] भास्कर ग्रन्थमाला संस्कृत हिंदी कोश [मेरठ] अर्हन्त = जैन तीर्थङ्कर,
जिन, जिनेन्द । [घ] शब्द कल्पद्र म कोश, अहंन्त = जिन ] [ङ] शब्दार्थ चिंतामणि कोश, अर्हन्त = जिन, जिनेन्द्र । [च] श्रीधर भाषा कोश, अर्हन्त = जैन मुनि । [छ] "अर्हन्त भक्ति" खंड २ भी देखिये ।
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