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उपनिषद् में नग्न दिगम्बर त्यागियों के गुण
"यथाजात रूप धरो निन्थो निष्परिग्रस्तद् ब्रह्म मार्गे सम्यक सम्पन्नः शुद्ध मानसः प्राणसंधारणार्थ यथोक्त कोलं विमुक्तो भैक्षमाचरन्नुदरपात्रेण लाभालाभयो: समो भूत्वा शून्यागार देवगृह तृणकूट बल्मीक वृक्षमूल कुलालशालाग्निहोत्र गृह नदी पुलिन गिरि कुहर कंदर कोटर निर्जर स्थंडिलेषु तेष्वनिकेत वास्य प्रयत्नो निर्ममः शुक्ल ध्यान परायणोऽध्यात्मनिष्ठोऽशुभकर्म निर्मूलन परः संन्यासेन देह त्यागं करोति स परमहंसो नाम परमहंसो नामेति" ।।
-अष्टा त्रिंशधोपनिषध (जावालोपनिषध) पृ. २६०-२६१ अर्थात्-जो 'नग्नरूपधारण रखने वाले,अन्तरंग और वहिरंग परिग्रहों के त्यागी, शुद्ध मन वाले, विशुद्धात्मीय मार्ग में ठहरे हुये, लाभ और अलाभ में समान बुद्धि रखने वाले, हर प्राणी की रक्षा करने वाले", मन्दिर पर्वत की गुफा दरियाओं के किनारे
और एकान्त स्थान पर शुक्ल ध्यान में तत्पर रहने वाले, आत्मा में लीन होकर अशुभ कर्मों'' का नाश करके संन्यास सहित शरीर का त्याग करने वाले हैं वे परमहंस कहलाते हैं। १. “यथा नाम तथा गुण' खण्ड २ । २. 'बाइस परीषह'' खण्ड २ में नग्नता नाम की छटी परीषह । ३-४. अंतरंग और वहिरंग परीग्रहों के भेद जानने के लिए देखिए "भ० महावीर का
त्याग" खण्ड २ । ५-६. “बाइस पहीषह' खण्ड २ में अलभ नाम की पन्द्रवी.परीषह । ७. "जैन धर्म वीरों का धर्म है' खण्ड ३ । ८. बारह तप" विविक्त शय्यासन नाम का पांचवां तप खण्ड २ । ६. “बारह तप" में शुक्ल ध्यान नाम का बारहवां तप खण्ड २ । १०. “कर्मवाद" खण्ड २ । ११. विशेषता के लिए "रत्नकरणड श्रावकाचार' देखिए।
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