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यजुर्वेद में भगवान महावीर की उपासना
आतिथ्यं रूपं मासरं महावीरस्य नग्नहुः । रूपमुपसदामेतत्तिस्रो रात्रीः सुरासुता ॥ १४ ॥
-यजुर्वेद' अ० १६ । मन्त्र १४ अर्थात्-अतिथि स्वरूप पूज्य मासोपवासी नग्न स्वरूप महावीर' की उपासना करो जिससे संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय रूप तीन अज्ञान और धन मद, शरीर मद, विद्या मद की उत्पत्ति नहीं होती।
१. वेदों में भी कुछ जैन धर्म के तीर्थंकरादि का नाम आता है या नहीं इस
विचार से हमने देखा तो हमें बहुत से मंत्र मिले जिनमें जैन तीर्थकर तथा साक्षात् अर्हन्त का नामोल्लेख है तथा अन्य देवताओं की तरह ौन तीर्थंकरों का भी आह्वान तथा स्तुति है। -पं० मक्खनलाल : "वेद पुराणादि ग्रन्थों में जैन धर्म का अस्तित्व" पृ० ५२.
२. इस श्लोक में महावीर शब्द से किसी अन्य महापुरुष का भ्रम न हो जाए इस
लिए वेद निर्माताओं ने 'नग्न स्वरूप' शब्द लिखकर इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि महावीर जैनियों के तीर्थकर हैं । यदि आप ऋग्वेद, अथर्नवेद, यजुर्वेद और सामवेद में जैन अर्हन्तों तथा तीर्थंकरों की भक्ति के विशेष श्लोक जानना चाहें तो "अर्हन्त-भक्ति" खण्ड २ व "जैन धर्म और वैदिक धर्म" खण्ड ३ देखिए।
3. i. Yajar Veda contains the names of Jain Tirthankaras.
-Dr. Radhakrishnan: Indian Philosophy, Vol. II P. 287.
ij, Jain Tirtbankaras are well. Known in the Vedic Literature.
-Dr. B. C. Law Historical Gleanings.
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