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ॐ अहम्
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लोक दृष्टि में श्री वर्धमान महावीर
और
उनकी शिक्षा
ऋग्वेद में श्री वर्धमान-भक्ति
देव वहिवर्धमानं सुवीरं स्तीर्ण राय सुभर वेद्यस्याम् । धृतेनाक्तं वसवः सीदतेदं विश्वेदेवा प्रादित्यायज्ञियासः ॥ ४ ॥
-ऋग्वेद' मंडल २, अ. १, सूक्त ३.
अर्थात्-हे देवों के देव, वर्धमान ! आप सुवीर (महावीर) हैं, व्यापक हैं। हम संपदाओं की प्राप्ति के लिये इस वेदी पर घृत से आपका आह्वान करते हैं, इसलिये सब देवता इस यज्ञ में आवें और प्रसन्न होवें।
१. ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद और सामवेद में अर्हन्तों तथा दूसरे जैन तीर्थंकरों
की भक्ति और स्तुति के अनेक श्लोक "अहंन्त-भक्ति" खण्ड २ व “जैन धर्म और वैदिक धर्म" खण्ड ३ में देखिये ।
R. Vedas and Hindu Purads contain the names of Jain
Tirthankaras frequently. -Veda Tirth Prof. Virupuksha Beriyar: Jain Sudhark.
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