Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० ऋषभदेवजी ४ तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन
समावेश कराने की शक्ति वाले ।
संभिन्नश्रोत लब्धि - एक इन्द्रिय से पाँचों इन्द्रियों का काम लेने की शक्ति वाले । जंघाचारण लब्धि - इसके प्रताप से वे एक उड़ान में रूचकवर द्वीप पर पहुँचने में समर्थ थे । लौटते समय प्रथम उड़ान में नन्दीश्वर द्वीप और दूसरी उड़ान में अपने स्थान पर आ जाते । यदि ऊर्ध्वगति करे, तो एक उड़ान में मेरु पर्वत पर रहे हुए पांडुकवन में पहुँच जाते और लौटते समय प्रथम उड़ान में नन्दनवन में और दूसरी उड़ान में अपने स्थान पर आने में शक्तिमान् थे ।
विद्याचारण लब्धि - - प्रथम उड़ान में मानुषोत्तर पर्वत पर और दूसरी उड़ान में नन्दीश्वर द्वीप पर जाने की शक्ति वाले और लौटते समय एक ही उड़ान में अपने स्थान पर पहुँचने की शक्ति वाले थे। उनकी ऊर्ध्वं गमन की शक्ति जंघाचारण के विपरीत थी । इसके अतिरिक्त उन्हें आशीविष लब्धि, निग्रह लब्धि, अनुग्रह लब्धि और अनेक प्रकार की लब्धि प्राप्त हो गई थी । किन्तु वे इन लब्धियों का उपयोग नहीं करते थे ।
तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन
२९
महामुनि वज्रनाभ स्वामी ने बीस प्रकार की उत्तम आराधना कर के तीर्थंङ्कर नामकर्म का दृढ़ बन्ध किया । वह उत्तम आराधना इस प्रकार है-
१ अरिहंत भगवंतों की भक्ति, बहुमान, गुणानुवाद किया और उनके विरोधियों द्वारा किया जाता हुआ अवर्णवाद मिटा कर आराधना की ।
२ सिद्ध भगवंतों की श्रद्धा, भक्ति, स्तवनादि कर के ।
३ प्रवचन -- जिनेश्वर भगवंतों द्वारा प्ररूपित द्वादशांगी रूप निर्ग्रथ प्रवचन की भक्ति, बहुमान कर के ।
४ गुरु -- आचार्य का बहुमान कर के, भक्तिपूर्वक अनुकूल आहारादि से वात्सल्य कर के ।
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५ स्थविर - २० वर्ष की दीक्षा वाले पर्याय स्थविर, ६० वर्ष की उम्र वाले वय स्थविर, स्थानांग, समवायांग के ज्ञाता श्रुतस्थविर की भक्ति कर के ।
६ बहुश्रुतपन को प्राप्त हुए महात्माओं की सेवा कर के ।
७ तपस्वी मुनिवरों की वैयावृत्य कर के ।
८ ज्ञान -- वाचना, पृच्छा आदि से सूत्र, अर्थ और दोनों की साधना करते रहने से ।
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