Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
भ० संभवनाथजी
श्रेलोक्यप्रभवे पुण्य, संभवाय भवच्छिदे ।
श्रीसंभवजिनेन्द्राय मनोभवभिदे नमः ॥१॥ जो तीन लोक के नाथ हैं, जिनका जन्म पवित्र है, जो संसार का छेदन और कर्म का भेदन करने वाले हैं, ऐसे जिनेश्वर भगवान् श्री संभवनाथ को नमस्कार करके भवचक्र का भेदन करने वाला भगवान का जीवन-चरित्र प्रारम्भ किया जाता है।
धातकीखंड द्वीप के ऐरावत क्षेत्र में क्षेमपुरी नाम की एक प्रसिद्ध नगरी थी। वहाँ का विपुल वाहन नाम का तेजस्वी एवं पराक्रमी राजा था। वह प्रजा का पुत्रवत् पालन करता था। वह राजा ऐसा नीतिवंत था कि अपने खुद के किसी दोष को भी दूसरे के दोष की तरह सूक्ष्म दृष्टि से देखता और उसे दूर किये बिना चेन नहीं लेता था । वह अपराध का दण्ड और गुणों की पूजा उचित रूप से करता था। उसके मन में जिनभक्ति का स्थायी निवास हो गया था। उसकी वाणी में जिनेश्वर एवं उनके शासन की प्रशंसा होती रहती थी। वह झुकता था तो जिनेश्वर देव और निग्रंथ गुरु के चरणों में ही, शेष सभी उसके आगे झुकते थे । वह परम उदार था। उसके राज्य में सभी सुखी और समुद्ध थे।
भयंकर दुष्काल में संघ-सेवा
राजा नीतिपूर्वक राज कर रहा था। कालान्तर में अशुभ कर्म के उदय से राज्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org