Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० सुमतिनाथजी-महारानी का न्याय
" महाराज ! स्त्रियों के विवाद का निर्णय, स्त्री ही सरलता से कर सकती है । इसलिए यह विवाद आप मुझे सौंप दीजिए।"
___ दूसरी सभा में रानी भी उपस्थित हुई । वादी-प्रतिवादी महिलाएँ बुलाई गई। दोनों पक्षों को सुन कर राजमहिषि ने कहा--
"तुम्हारा झगड़ा साधारण नहीं है। सामान्य ज्ञान वाले से इसका निर्णय होना सम्भव नहीं है । मेरे गर्भ में तीर्थंकर होने वाली भव्यात्मा है। तुम कुछ महीने ठहरो। उनका जन्म हो जाने पर वे अवधिज्ञानी तीर्थंकर तुम्हारा निर्णय करेंगे।"
__रानी की आज्ञा विमाता ने तो स्वीकार कर ली, किन्तु खरी माता ने नहीं मानी और बोली,--
__"महादेवी ! इतना विलम्ब मुझ से नहीं सहा जाता। इतने समय तक मैं अपने प्रिय पुत्र को इसके पास छोड़ भी नहीं सकती। मुझे इसके अनिष्ट की शंका है । आप तीर्थंकर की माता हैं, तो आज ही इसका निर्णय करने की कृपा करें।"
महारानी ने यह बात सुन कर निर्णय कर दिया--" असल में माता यही है। यह अपने पुत्र का हित चाहती है। इसका मातृहृदय पुत्र को पृथक् होने देना नहीं चाहता। दूसरी स्त्री तो धन और पुत्र की लोभिनी है । इसके हृदय में माता के समान वास्तविक प्रेम नहीं है । इसीलिए यह इतने लम्बे काल तक अनिर्णित अवस्था में रहना स्वीकार करती है।"
इस प्रकार निर्णय कर के रानी ने पुत्र वाली को पुत्र दिलवाया। सभा चकित
रह गई।
गर्भकाल पूर्ण होने पर वैशाख-शक्ला अष्टमी को मघा-नक्षत्र में पुत्र का जन्म हुआ। गर्भकाल में माता द्वारा सुमति (बाद निर्णय में बुद्धिमता) का परिचय मिलने पर प्रभु का "सुमति' नाम दिया गया । यौवन-वय में सुन्दर राज कन्याओं के साथ लग्न हुआ। दस लाख पूर्व बीतने पर पिता ने अपना राज्यभार आपको दिया । उनतीस लाख पूर्व और बारह पूर्वांग तक राज्य का पालन किया और वैशाख-शुक्ला नवमी को मघा-नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ संसार का त्याग कर प्रव्रज्या स्वीकार की । बीस वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में रहने के बाद चैत्र-शुक्ला एकादशी के दिन मघा-नक्षत्र में केवलज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न हुआ।
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