Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० वासुपूज्यजी -- धर्म-दुर्लभ भावना
वायु की गति ऊर्ध्व नहीं हो कर तिरछी गति है, यह भी धर्म के ही प्रताप से है । यदि वायु की गति ऊर्ध्वं होती, तो सभी वस्तुएँ उड़ कर आकाश में चली जाती और हम पृथ्वी पर सुखपूर्वक नहीं रह सकते । वायु प्रकोप से कभी मकान आदि उड़ जाते हैं, यह स्थिति पापोदय वालों के लिए कारणभूत होती है । यदि वायु का स्वभाव ही उस प्रकार वेगपूर्वक ऊर्ध्व गमन का होता, तो जीवों की क्या दशा होती ? वास्तव में यह धर्मं का ही प्रभाव है कि जिससे महावायु और प्रतिकूल वायु पर अंकुश रहता है ।
विश्वभर के लिए आधारभूत यह पृथ्वी, किसके आधार पर है ? यह घनोदधि आदि तथा आकाश पर आधारित पृथ्वी, नीचे चली जा कर सभी को नष्ट क्यों नहीं कर देती ? क्या इसे कोई ईश्वर जैसी महाशक्ति उठाये हुए है ? नहीं, यह स्वभाव से है और धर्म के प्रताप से इसमें विभाव पैदा नहीं होता । जहाँ पापोदय विशेष हो, वहाँ भूकम्प आदि विभाव उत्पन्न हो कर विनाश होता है । अतएव पृथ्वी की स्वाभाविक स्थिति भी धर्म के प्रभाव प्रभावित है ।
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जीवों को सूर्य का प्रकाश और चन्द्र की ज्योति मिलती है और उससे विश्व का उपकार होता है, वह भी धर्माज्ञा से प्रभावित है । जहाँ व जब सूर्य का प्रकाश न्यूनाधिक होता है, तब लोगों के कष्ट बढ़ते हैं ।
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अबन्धूनामसौ बन्धु - रसखीनामसौ सखा । अनाथानामसौ नाथो, धर्मो विश्वैकवत्सलः ॥ ९ ॥ रक्षोयक्षोरगव्याघ्र - व्यालानलगरादयः 1 नापकर्तुमलं तेषां यैर्धर्मः शरणं श्रितः ॥१०॥ धर्मो नरक पाताल - पातादवति देहिनः । धर्मो निरुपमं यच्छत्यपि सर्वज्ञवैभवम् ॥ ११॥
जिसके कोई भाई नहीं, उसका सच्चे अर्थ में धर्म ही भाई है । धर्म अमित्र का मित्र और अनाथ का नाथ है । यह सभी का हित करने वाला है । जिसने धर्म का शरण लिया है, उसे यक्ष-राक्षस आदि नहीं सता सकते, साँप नहीं काटता, सिंह वार नहीं करता, और aft तथा विष आदि कष्ट उत्पन्न नहीं कर सकते । धर्म प्राणी को नरक एवं अधोलोक में नहीं गिरने देता । यह धर्म की ही महिमा है कि जिससे जीव, सर्वज्ञता रूपी अनुपम आत्म- लक्ष्मी को प्राप्त कर परम ऐश्वर्यशाली परमात्मा बन जाता है ।
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