Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 348
________________ भ० शांतिनाथ जी--कुर्कट कथा ३३५ भेज कर अपना वज्रतुंड नामक कुकुंट मँगाया। दोनों कुर्कुट आमने सामने खड़े किये गये। वे दोनों आपस में लड़ने लगे । बहुत देर तक लड़ते रहे, परन्तु दोनों में से न तो कोई विजयी हुआ न पराजित । तब महाराज धनरथ ने कहा--'इन दोनों में से कोई एक किसी दुसरे पर विजय प्राप्त नहीं कर सकेगा।" " क्यों नहीं जीत सकेगा? क्या कारण है--पिताश्री इसका"--युवराज मेघरथ ने पूछा। - "इसका कारण इनके पूर्व-भव से सम्बन्धित है"--महाराजा धनरथ, अपने विशिष्ट ज्ञान से उन कुर्कुटों के पूर्वभव का वृत्तांत सुनाने लगे; -- "इस जम्बूद्वीप के ऐरवत क्षेत्र में रत्नपुर नाम का समृद्ध नगर था। वहाँ 'धनवसु' और 'दत्त' नाम के दो व्यापारी रहते थे। उनमें परस्पर गाढ़-मैत्री थी। उन दोनों में धनलोलुपता बहुत अधिक थी। वे व्यापारार्थ गाड़ियों में सामान भर कर विदेशों में भटकते ही रहते थे। वे भूखे प्यासे, शीत, ताप आदि सहते हुए और बैलों पर अधिक भार भर कर उन्हें ताड़ना-तर्जना करते हुए, उनकी पीठ पर शूल भोंकते हुए फिरते रहते थे। वे शांति से भोजन भी नहीं कर सकते थे। चलते-चलते खाते और रूखा सूखा खा कर मात्र धन के लोभ में ही लगे रहते । खोटे तोल-नाप करते। कपट और ठगाई उनके रगरग में भरी रहती थी। वे मिथ्यात्य में रत रहते थे। धर्म की ओर उनका ध्यान ही नहीं जाता था। वे आर्तध्यान में ही लगे रहते थे। अपने ऐसे दुष्कर्म से वे तिर्यंच गति का आयुष्य बांध कर मरे और सुवर्णकला नदी के किनारे दो हाथी के रूप में पृथक्-पृथक् उत्पन्न हुए। एक का नाम 'ताम्रकलश' और दूसरे का 'कांचनकलश' था । वे दोनों योवनवय प्राप्त होने पर नदी किनारे के वृक्षों को तोड़ते-गिराते हुए और अपने यूथ के साथ घूमते-फिरते तथा विहार करते रहते थे। एक दिन दोनों यूथपति गजेन्द्रों का मिलना हो गया। वे दोनों एक दूसरे को देखने लगे। उनके मन में रोष की भावना प्रज्वलित हुई । दोनों आपस में लड़ने लगे और एक दूसरे को मार डालने के लिए प्रहार करने लगे। अन्त में दोनों हाथी लड़ते-लड़ते मर गये । मृत्यु पा कर वे अयोध्या नगरी के पशु-पालक नन्दीमित्र के यहाँ महिषी के गर्भ से उत्पन्न हुए। यौवनवय में वे बलवान और प्रचण्ड भैसे दिखाई देने लगे। वे विशाल डीलडौल वाले और आकर्षक थे । एक बार वहाँ के राजकुमार धनसेन और नन्दीसेन ने उन यमराज जैसे भैंसे को देखा । उन्होंने दोनों महिषों को लड़ाया। वे दोनों लड़ते-लड़ते मर कर उसी नगरी में मेंहे जन्में । वहाँ भी वे दोनों आपस में लड़ कर मरे और कर्कट योनि में जन्मे । ये दोनों वे ही मुर्गे हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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