Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सुभूम चक्रवर्ती - परशुराम की कथा
अन्न) की साधना करूँगा कि जिससे तेरे गर्भ से ऐसा पुत्र उत्पन्न हो, जो सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण हो ।" इस पर से रेणुका ने कहा- " हस्तिनापुर के महाराज अनंतवीर्य की रानी मेरी बहिन है । उसके लिए भी आप ऐसा चरु साधें कि जिससे उसके गर्भ से एक क्षत्रियोत्तम पुत्र का जन्म हो ।” जमदग्नि ने दोनों चरु की साधना की और दोनों चरु रेणुका को दे दिये । रेणुका के मन में विचार उत्पन्न हुआ--' में तो वनवासिनी हुई । किन्तु मेरा पुत्र भी यदि ऐसा ही वनवासी ब्राह्मण हो, तो इससे क्या लाभ होगा । यदि मेरा पुत्र क्षत्रियशिरोमणि हो, तो में धन्यभागा हो जाऊँगा ।" उसने क्षत्रिय चरु खा लिया और ब्राह्मण चरु अपनी बहिन को दे दिया। दोनों के एक-एक पुत्र हुआ । रेणुका के पुत्र का नाम
'राम' और उसकी बहिन के पुत्र का नाम ' कृतवीर्य' हुआ ।
एक बार एक विद्याधर आकाश मार्ग से जा रहा था । वह मार्ग में ही अतिसार रोग से आक्रान्त हो गया और अपनी आकाशगामिनी विद्या भूल गया । वह उस आश्रम के पाल उतरा -- जहाँ जमदग्नि, रेणुका और राम रहते थे । राम ने उस विद्याधर की सेवा की और निरोग बनाया। सेवा से प्रसन्न हो कर विद्याधर ने राम को परशु विद्या प्रदान की। राम ने उस विद्या को सिद्ध कर ली और परशु ( फरसा -- कुल्हाड़ी जैसा शस्त्र ) ग्रहण करने लगा । इससे उसका नाम 'परशुराम' प्रसिद्ध हो गया ।
कालान्तर में रेणुका अपनी बहिन को मिलने के लिए हस्तिनापुर गई । महाराज अनन्तवीर्यं रेणुका को देख कर मोहित हो गए और उसके साथ कामक्रीड़ा करने लगे । इस व्यभिचार से रेणुका के एक पुत्र का जन्म हुआ और उस जारज पुत्र के साथ वह आश्रम में पहुँची । जमदग्नि ने तो उसे स्वीकार कर लिया, किन्तु परशुराम को माता का कुकर्म सहन नहीं हुआ । उसने अपने फरसे से रेणुका और उसके पुत्र को मार डाला । यह समाचार अनन्तवीर्यं ने सुना, तो वह क्रोधित हो कर परशुराम पर चढ़ आया और जमदग्नि के आश्रम को नष्ट कर दिया । तापसों को मार पीट कर उनकी गायें आदि ले कर लौट गया । जब परशुराम ने तापसों की दुर्दशा का हाल सुना, तो अत्यन्त क्रुद्ध हो गया और फरसा लेकर राजा के पीछे पड़ा । परशुराम, अपने विद्या-सिद्ध फरसे से अनन्तवीर्य की सेना को काटने लगा । राजा सहित सेना मारी गई । अनन्तवीर्य के मरने के बाद उसके पुत्र कृतवीर्य का राज्याभिषेक हुआ । कृतवीर्य अपनी रानी तारा के साथ भोग भोगता हुआ सुखपूर्वक काल बिताने लगा ।
भूपाल मुनि का जीव, महाशक्र देवलोक से व्यव कर महारानी तारा के गर्भ में * देखो
पू. ३७७ ।
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