Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० मल्लिनाथजी
- युद्ध और अवरोध
वह पांचाल जनपद का अधिपति था । जितशत्रु नरेश भी भगवती मल्लिकुमारी के पूर्वभव के मित्र थे । उनका नाम अभिचन्द्र मुनि था । वे भी अनुत्तर विमान से च्यवकर आये थे । चोक्खा वहाँ अपने धर्म का प्रचार करने लगी । एकदा राजा अपनी एक हजार रानियों के साथ अन्तःपुर में था, तब चोक्खा परिव्राजिका वहाँ पहुँची। राजा और रानियों ने उसका आदर-सत्कार किया । धर्मोपदेश के पश्चात् राजा ने चोक्खा से पूछा -- "आप अनेक राजाओं के अन्तःपुर में जाती हैं, किन्तु मेरे अन्तःपुर की रानियों के समान रूपसौन्दर्य आपने और कहीं देखा है ?" राजा की बात सुन कर चोक्खा हँसी और बोली --
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" राजन् ! तुम कूप-मंडुक के समान हो । जिस प्रकार कूएँ में रहा हुआ मेंढक, अपने कूएँ को ही सबसे बड़ा मान कर समुद्र की बड़ाई नहीं जानता, उसी प्रकार तुम अपनी रानियों में ही संसारका समस्त सौन्दर्य देखते हो । किंतु तुम्हें मालूम नहीं है कि मिथिलेशनन्दिनी राजकुमारी मल्लि के सौन्दर्य के सामने तुम्हारी सभी रानियाँ फोकी हैं । ये उसकी दासी के तुल्य भी नहीं हैं। वह त्रिलोक-सुन्दरी है । कोई देवी भी उसके रूप की समानता नहीं कर सकती ।"
चोक्खा, राजा के मोह को भड़का कर चली गई । राजा ने शीघ्र ही दूत को बुलाया और मिथिला भेजा ।
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छहों दूत मिथिला पहुँचे और विनयपूर्वक मल्लिकुमारी को याचना की । किन्तु मिथिलेश ने सत्र की माँग ठुकराते हुए उन दूतों से कहा-
" तुम्हारे राजा नादान हैं, मूर्ख हैं । वे नहीं समझते कि हम पामय प्राणी किस अलौकिक आत्मा पर अपना मन बिगाड़ रहे हैं । जो महान् आत्मा, इन्द्रों से भी पूज्य है, उसके प्रति उन राजाओं का मोहभाव धिक्कार के योग्य है । तुम जाओ और अपने स्वामियों से कहो कि वे अपना दुःसाहस छोड़ दें ।"
युद्ध और अवरोध
इतना कहकर दूतों को अपमानपूर्वक निकाल दिया । वे दूत अपनी-अपनी राजधानी पहुँच कर अपने स्वामियों को मिथिलेश का उत्तर सुनाया । दूतों की बात सुन कर छहों राजा क्रोधित हुए और एक-दूसरे से दूत द्वारा परामर्श कर के मिथिलेश से युद्ध करने को तत्पर हो गये । छहों राजाओं की विशाल सेनाएँ विदेह देश की ओर बढ़ीं । उधर विदेहा
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