Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 392
________________ सुभूम चक्रवर्ती-- परशुराम की कथा यह तो विशेष लाभ की बात है । कल के भरोसे निश्चित रहना तो मूर्खता है ।" देवों ने उसकी दृढ़ता देख ली । अब वे किसी तापस की परीक्षा करने के लिए चले । चलते-चलते वे दोनों उस जमदग्नि तपस्वी के आश्रम में आये । दोनों देव जमदग्नि के पास आये । वह विशाल वट वृक्ष के नीचे बैठा था । उसकी बढ़ी हुई जटाएँ भूमि को स्पर्श कर रही थी । वह ध्यानारूढ़ था । दोनों देवों ने चिड़िया के जोड़े का रूप बनाया और जमदग्नि की दाढ़ी के झुरमुट में बैठ गए। चीड़े ने चिड़िया से कहा : - "प्रिये ! में हिमालय की ओर जाऊँगा ।" फिर कब लौटेगा " - चिड़िया ने पूछा । 66 " 'बहुत जल्दी " -- चीड़े ने कहा- " 'यदि तू वहीं किसी सुन्दर चिड़िया में लुब्ध हो कर मुझे भूल जाय तो " चिड़िया ने आशंका व्यक्त की । ३७९ "" 'नहीं, में वहाँ नहीं रुकूंगा । यदि में अपने वचन से मुकर जाऊँ, तो मुझे गो-हत्या का पाप लगे - चीड़े ने शपथपूर्वक कहा । 33 "नहीं, इस साधारण शपथ पर मैं तुझे नहीं छोड़ती । यदि तू यह शपथ लेकि ' में काम कर के वापिस नहीं लौटुं और वहीं किसी चिड़िया में फँस जाऊँ तो, मुझे इस तपस्वी का पाप लगे ।' इस शपथ पर में तुझे छोड़ सकती हूँ" - चिड़िया ने अपनी शर्त रखी और चीड़े ने स्वीकार करली | यह बात जमदग्निसुन रहा था। जब उसने चिड़िया को शर्त सुनी, तो क्रोधित हो गया और दोनों पक्षियों को हाथों में पकड़ कर पूछा ;"बोल, मैने कौनसा पाप किया ? में चिरकाल से ऐसा कठोर तप कर रहा हूँ और कभी कोई पाप नहीं किया, फिर भी तुम मुझे गो-घातक से भी महापापी बतला रहे हो ? बताओ मैने कब और कौनसा महापाप किया ?" -- Jain Education International चिड़िया ने कहा; --' ऋषिश्वर ! क्रोध क्यों करते हैं, क्या आप इस श्रुति को नहीं जानते -- " अपुत्रस्य गतिर्नास्ति, स्वर्गो नैव च नैव च," जब आप अपुत्र हैं, तो आपकी सद्गति कैसे होगी और आपकी यह तपस्या किस काम आएगी ? बिना गृहस्थ-धर्म का पालन किये बिना पत्नी और पुत्र को तृप्त कर, पितृ ऋण का भार उतारे और बिना गृहस्थ धर्म सञ्चालक उत्तराधिकारी छोड़े, यह व्यर्थ का पाप प्रपञ्च क्यों किया ? जो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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