Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 405
________________ ३९२ तीर्थङ्कर चरित्र (४) अरहन्त्रक श्रमणोपासक ने जो दिव्य कुण्डल जोड़ी, मिथिलेश को भेंट की थी और जिसे भगवती महिल कुमारी धारण करती थी, उस कुण्डल की संधी टूट गई । स्वर्णकारों ने उसे जोड़ने का बहुत प्रयत्न किया, किन्तु वह जुड़ नहीं सकी । क्योंकि वह देव-निर्मित कुण्डल था । उसको जोड़ने को शक्ति मनुष्य में कहाँ ? उन्होंने महाराजा से निवेदन किया- 'यदि आज्ञा हो, तो हम इस कुण्डल जैसे ही दूसरे कुण्डल बना सकते हैं, किन्तु इसे जोड़ने की शक्ति हम में नहीं है । हमने बहुत परिश्रम किया, किन्तु यह हम से नहीं जुड़ सका ।" नरेन्द्र कुपित हुए । उन्होंने क्रोधपूर्वक कहा--' तुम कैसे कलाकार हो ! तुम से एक कुण्डल की संधी भी नहीं जुड़ सकी । इस प्रकार के कलाविहीन लोग हमारे देश के लिए कलंक रूप हैं । जाओ निकलो-- इस राज्य से ! तुम्हारे जैसे ढोंगियों की (जो कलाविहीन हो कर भी अपने को उत्कृष्ट कलाकार बतलाते हैं) यहाँ जरूरत नहीं है । हमारा देश छोड़ कर निकल जाओ ।" स्वर्ण कारों को देश निकाला हो गया । वे अपने-अपने कुटुम्ब और सर-सामान ले कर और विदेह देश छोड़ कर काशी देश की वाराणसी नगरी में आये । उस समय वहाँ 'शंख' नाम का नरेश राज करता था । वह सम्पूर्ण काशी देश का अधिति था । ये शंव नरेश, महामुनि महाबलजी के अनुगामी 'वसु' नाम के महात्मा थे और अनुत्तर विमान से च्यव कर आये थे । स्वर्णकारों का संघ, बहुमूल्य भेंट ले कर काशी नरेश की सेवा में उपस्थित हुआ । उन्होंने भेट समर्पित कर के निवेदन किया- "स्वामिन् ! हमें विदेह देश से निकाला गया। हम आपकी शरण में आये हैं । हमें आश्रय प्रदान कीजिए ।" "विदेहराज ने तुम्हें देश निकाला क्यों दिया" - - राजेन्द्र ने पूछा । "नराधिपति ! विदेहराजकुमारी मल्लि के कुंडलों की संधी टूट गई थी । हम उस संत्री को जोड़ नहीं सके। इसलिए कुपित हो कर मिथिलेश ने हमें देश निकाला दिया ।" "स्वामिन्! हम कलाकार हैं। अपनी कला में हम निष्णात हैं । किन्तु वह कुंडल जोड़ी ही अलौकिक थी । उसका निर्माण मनुष्य द्वारा नहीं हुआ था। उसकी संधी को मिला देना किसी भी मनुष्य के लिए असंभव है । फिर हम उसे कैसे जोड़ सकते थे ? बस यही हमारा अपराध था" -- स्वर्णकार संघ के प्रमुख ने कहा । "ऐसी अपूर्व कुंडल की जोड़ी है वह ? अच्छा यह बताओ कि उन दिव्य कुंडलों को धारण करने वाली विदेहराज कन्या कैसी है"- --राजा का प्रश्न । "स्वामिन् ! विदेहराज कन्या मल्लिकुंमारी के रूप, लावण्य और यौवन का हम क्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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