Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कर चरित्र
(४) अरहन्त्रक श्रमणोपासक ने जो दिव्य कुण्डल जोड़ी, मिथिलेश को भेंट की थी और जिसे भगवती महिल कुमारी धारण करती थी, उस कुण्डल की संधी टूट गई । स्वर्णकारों ने उसे जोड़ने का बहुत प्रयत्न किया, किन्तु वह जुड़ नहीं सकी । क्योंकि वह देव-निर्मित कुण्डल था । उसको जोड़ने को शक्ति मनुष्य में कहाँ ? उन्होंने महाराजा से निवेदन किया- 'यदि आज्ञा हो, तो हम इस कुण्डल जैसे ही दूसरे कुण्डल बना सकते हैं, किन्तु इसे जोड़ने की शक्ति हम में नहीं है । हमने बहुत परिश्रम किया, किन्तु यह हम से नहीं जुड़ सका ।" नरेन्द्र कुपित हुए । उन्होंने क्रोधपूर्वक कहा--' तुम कैसे कलाकार हो ! तुम से एक कुण्डल की संधी भी नहीं जुड़ सकी । इस प्रकार के कलाविहीन लोग हमारे देश के लिए कलंक रूप हैं । जाओ निकलो-- इस राज्य से ! तुम्हारे जैसे ढोंगियों की (जो कलाविहीन हो कर भी अपने को उत्कृष्ट कलाकार बतलाते हैं) यहाँ जरूरत नहीं है । हमारा देश छोड़ कर निकल जाओ ।" स्वर्ण कारों को देश निकाला हो गया । वे अपने-अपने कुटुम्ब और सर-सामान ले कर और विदेह देश छोड़ कर काशी देश की वाराणसी नगरी में आये । उस समय वहाँ 'शंख' नाम का नरेश राज करता था । वह सम्पूर्ण काशी देश का अधिति था । ये शंव नरेश, महामुनि महाबलजी के अनुगामी 'वसु' नाम के महात्मा थे और अनुत्तर विमान से च्यव कर आये थे । स्वर्णकारों का संघ, बहुमूल्य भेंट ले कर काशी नरेश की सेवा में उपस्थित हुआ । उन्होंने भेट समर्पित कर के निवेदन किया-
"स्वामिन् ! हमें विदेह देश से निकाला गया। हम आपकी शरण में आये हैं । हमें आश्रय प्रदान कीजिए ।"
"विदेहराज ने तुम्हें देश निकाला क्यों दिया" - - राजेन्द्र ने पूछा ।
"नराधिपति ! विदेहराजकुमारी मल्लि के कुंडलों की संधी टूट गई थी । हम उस संत्री को जोड़ नहीं सके। इसलिए कुपित हो कर मिथिलेश ने हमें देश निकाला दिया ।" "स्वामिन्! हम कलाकार हैं। अपनी कला में हम निष्णात हैं । किन्तु वह कुंडल जोड़ी ही अलौकिक थी । उसका निर्माण मनुष्य द्वारा नहीं हुआ था। उसकी संधी को मिला देना किसी भी मनुष्य के लिए असंभव है । फिर हम उसे कैसे जोड़ सकते थे ? बस यही हमारा अपराध था" -- स्वर्णकार संघ के प्रमुख ने कहा ।
"ऐसी अपूर्व कुंडल की जोड़ी है वह ? अच्छा यह बताओ कि उन दिव्य कुंडलों को धारण करने वाली विदेहराज कन्या कैसी है"- --राजा का प्रश्न ।
"स्वामिन् ! विदेहराज कन्या मल्लिकुंमारी के रूप, लावण्य और यौवन का हम क्या
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