Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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म. मल्लिनाथजी- अरहन्नक श्रावक की दढ़ता
वती महारानी थी और सुबुद्धि नाम का प्रखर बुद्धिशाली मन्त्री था ।
साकेतपुर नगर के बाहर नागदेव का मंदिर था। महारानी पद्मावती, नागदेव का उत्सव कर रही थी। प्रतिबुद्ध नरेश के साथ महारानी उस उत्सव में गई । राजाज्ञा से वहाँ राजकुदम्ब के लिए एक 'पुष्प-मण्डप' तय्यार किया गया। वह इस प्रकार कलापूर्ण ढंग से सुन्दर बनाया गया था कि देखने वालों को उसकी सुन्दरता अपूर्व लगे। उस 'कुसुमगृह' में विविध प्रकार के सुन्दर पुष्पों से बनाया हुआ एक मनोहर गेंद ( अथवा मदगर) रखा गया था। जब प्रतिबुद्ध नरेश, पुष्प-मंडप में आये और विविध पुष्पों से बने हुए उस मनोहर श्रीदामगंड को देखा, तो चकित रह गये। इस प्रकार का उत्तम और कलापूर्ण श्रीदामगंड उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। उनकी दृष्टि उसी पर स्थिर हो गई। उन्होंने अपने महामात्य ‘सुबुद्धि' से पूछा--'देवप्रिय ! तुम मेरे आदेश से अनेक राज्यों में गये और अनेक उत्सवों में शरीक हुए । तुमने अन्य किसी स्थान पर इस प्रकार का उत्तम श्रीदामगड देखा है ?" सुबुद्धि ने कहा-"स्वामिन् ! आपकी आज्ञा से एक बार मैं मिथिला गया था। उस समय वहाँ राजकन्या मल्लि की वर्ष गाँठ मनाई जा रही थी। वहाँ मैने जो श्रीदामगंड देखा, वह अपूर्व था। आपका यह श्रीदामगंड तो उसके लाखवें अंश में भी नहीं आता ।" महामात्य की यह बात सुन कर राजा ने पूछा--'देवप्रिय ! जिस राजकुमारी का श्रीदामगंड इतना उत्तम है, तो वह स्वयं कैसी है ?" " स्वामिन् ! राजकुमारी मल्लि, विश्वभर में अपूर्व एवं अनुपम सुन्दरी है। उसकी सुन्दरता की बराबरी विश्व की कोई भी सुन्दरी नहीं कर सकती।" महामात्य के शब्दों ने प्रतिबद्ध के मोह को जाग्रत कर दिया। उसका पूर्व स्नेह जाग्रत हुआ। उसने अपने दूत को, राजकन्या मल्लि की याचना करने के हेतु मिथिला नरेश के पास भेजा । उसने दूत को इतना अधिकार दे दिया था कि यदि मल्लि के बदले राज्य भी देना पड़े, तो देदे।' इस प्रकार पूर्वभव का प्रथम मित्र आकर्षित हुआ।
अरहन्नक श्रावक की दढ़ता
(२)महात्मा धरणजी के अवतरण और आकर्षण की कथा इस प्रकार है। अंगदेश की चम्पानगरी में 'चन्द्रच्छाया' राजा राज व रता था। वहाँ अरहन्नक आदि अनेक व्यापारी रहते थे। वे सभी सम्मिलित रूप से नौका द्वारा विदेशों में व्यापार करते थे। पर
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