Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 393
________________ तीयंकर चरित्र अवस्था गृहस्थ-धर्म पालन करने की थी, उसे नष्ट कर के और कर्तव्य-भ्रष्ट हो कर आपने पार नहीं किया क्या ? जरा शांति से विचार कर देखिये।" तपस्वी विचार में पड़ गया। उसने सोचा 'बात तो ठीक कहता है-यह पक्षी। धर्म-शास्त्र में लिखा है कि पुत्र-विहीन मनुष्य की सद्गति नहीं होती। मैं इस सिद्धांत को तो भूल ही गया। इस भूल से मेरा इतने वर्षों का जप, तप, ध्यान और साधना व्यर्थ गई । बिना स्त्री और पुत्र के मेरा उद्धार नहीं हो सकता।" इस प्रकार जमदग्नि को विचलित हुआ जान कर धनवन्तरी देव आहेत् हो गया और दोनों देव अदृश्य हो गए। मिथ्या विचारों से भ्रमित जमदग्नि ने अपना आश्रम छोड़ दिया और 'नेमिक कोष्टक ' नगर में आया। वहाँ के राजा जितशत्रु के बहुत-सी कन्याएँ थी। उनमें से एक कन्या की याचना करने के लिए जमदग्नि राजा के पास आये । राजा ने उनका सत्कार किया और आने का प्रयोजन पूछा । जमदग्नि ने कहा--" मैं आप से एक कन्या की याचना करने आया हूँ।" राजा उसकी शक्ति से डरता था। उसने कहा--" मेरे सौ कन्या हैं। इनमें से जो आपके साथ आना चाहे, उसे आप ले सकते हैं।" जमदग्नि अंतःपुर में गये और राजकुमारियों से कहा-'तुम में से कोई एक मेरी धर्मपत्नी हो जाओ।" राजकुमारियों ने यह बात सुन कर तिरस्कार पूर्वक कहा: -"अरे ओ जोगडे ! भीख मांग कर पेट भरता है, जटाधारी ऋषि बना हुआ है, तुझे राजकुमारी को पत्नी बनाने का मनोरथ करते लज्जा नहीं आती ?" इस प्रकार सभी ने उससे घृगा की और उसकी इस अनहोनी बात पर 'थू थू' कर के मुंह बिगाड़ने लगी। जमदग्नि इस अपमान से क्रोधित हो गया और अपनी शक्ति से उन सब को कुबड़ी बना दिया। उस समय एक छोटी कन्या रेणु धूल के ढेर के साथ खेल रही थी। जमदग्नि ने उसे पुकारा--" रेणुका ! बच्ची ने जमदग्नि की ओर देखा । उसने एक बिजोरे का फल दिखाते हुए कहा--"ले, रेणुका ! यह लेना है ?" बालिका ने फल लेने के लिए हाथ बढ़ाया । उसके बढ़े हुए हाथ को स्वीकृति मान कर उसे उठा लिया। राजा ने उस बालिका को गाय आदि के साथ विधिपूर्वक दे दी। संतुष्ट हुए जमदग्नि ने सभी राजकुमारियों को स्वस्थ किया। रेणुका को जमदग्नि अपने आश्रम में लाया और यत्नपूर्वक उसका पालन-पोषण करने लगा। कालान्तर में रेणुका यौवन वय की प्राप्त हुई और जमदग्नि ने उसे पत्नी रूप में स्वीकार की । ऋतुकाल होने पर जमदग्नि ने रेणुका से कहा--"मैं तेरे लिए एक ऐसे चरु (हवन के लिए पकाया हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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