Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 395
________________ ३८२ तीर्थंकर चरित्र आया | महारानी ने चौदह महास्वप्न देखे | कृतवीर्य ने अपनी माता से, पिता की मृत्यु का हाल सुना, तो पितृघातक से वैर लेने पर उद्यत हो गया । वह सेना ले कर जमदग्नि के आश्रम में आया और जमदग्नि को मार डाला । जब परशुराम ने सुना, तो वह हस्तिनापुर आया और कृतवीर्य को मार कर स्वयं हस्तिनापुर का राजा बन गया । परशुराम की क्रूरता से भयभीत हो कर महारानी तारा निकल भागी और वन में जा कर एक तापस के आश्रम में पहुँची । कुलपति ने परिस्थिति का विचार कर तारा को भूमिगृह में रखी । वहाँ उसके पुत्र का जन्म हुआ । भूमिगृह में जन्म होने के कारण बालक का नाम ' सुभूम' रखा । क्रोध मूर्ति के समान परशुराम ने क्षत्रियों का संहार करना प्रारंभ किया । एक बार वह विनाशमूर्ति उस आश्रम में पहुँची और क्षत्रिय को खोजने लगी । तापसों ने कहा--"हम तपस्या करने वाले क्षत्रिय हैं ।" परशुराम ने सात बार पृथ्वी को क्षत्रियों से रहित कर दी और मारे हुए क्षत्रिय योद्धाओं की दादाओं से थाल भर कर प्रदर्शन के लिए रख दिया । $4 एक बार परशुराम ने किसी भविष्यवेत्ता से पूछा- मेरी मृत्यु किस निमित्त से होगी ?" उत्तर मिला - " जिस पुरुष के प्रताप से ये दाढ़ाएँ क्षीर रूप में परिणत हो जायगी और जो इस सिंहासन पर बैठ कर उस खीर को पी जायगा, वही तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगा ।" यह सुन कर परशुराम ने एक दानशाला स्थापित की और उसके सामने एक उच्चासन पर दाढ़ाओं से परिपूर्ण वह थाल रखवाया और उस पर पहरा लगा दिया । सुभूम बढ़ते-बढ़ते युवावस्था में आया । वैताढ्य पर्वत पर रहने वाले विद्याधर मेघनाद ने किसी भविष्यवेत्ता से पूछा-" मेरी पुत्री पद्मश्री का पति कौन होगा ?" भविष्यवेत्ता ने सुभूम को बताया । मेघनाद, पुत्री को ले कर सुभूम के पास आया और उसके साथ पुत्री के लग्न कर के स्वयं उसकी सहायता के लिए उसके पास रह गया । एक बार सुभूम ने अपनी माता से पूछा - " क्या पृथ्वी इतनी ही बड़ी है, जहाँ हम रहते हैं ? " माता ने कहा--" पुत्र ! पृथ्वी तो असंख्य योजन लम्बी व चौड़ी है । इस पर हस्तिनापुर नगर है, जिस पर तुम्हारे पिता राज करते थे । किन्तु दुष्ट परशुराम ने उन्हें मार डाला और खुद राजा बन गया । उस समय तुम गर्भ में थे । मैं तुम्हें ले कर यहाँ चली आई और गुप्त रूप से तुम्हारा पालन किया ।" यह सुनते ही सुभूम का क्रोध भड़का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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