Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 397
________________ ३८४ तीर्थङ्कर चरित्र 'प्रहलाद' नाम का प्रतिवासुदेव हुआ । जम्बूद्वीप के दक्षिण भरत में वाराणसी नगरी थी । अग्निसिंह नाम का इक्ष्वाकुवंशी राजा था । उसके रूप एवं सौन्दर्य से भरपूर जयंती और शेषवती नाम की दो रानियाँ थी । वसुंधर मुनि का जीव, पाँचवें स्वर्ग से च्यव कर चार महास्वप्न के साथ महारानी जयंती के गर्भ में आया । जन्म होने पर पुत्र का नाम 'नन्दन' दिया । ललितमित्र का जीव, महारानी शेषवती के गर्भ में सात महास्वप्न के साथ आया । जन्म होने पर पुत्र का नाम 'दत्त' रखा। दोनों भाई युवावस्था में समानवय के मित्र के समान लगते थे । वे महापराक्रमी योद्धा थे । 1 प्रतिवासुदेव प्रहलाद को समाचार मिले कि - अग्निसिंह राजा के पास ऐरावत के समान उत्तम हाथी है । उसने हाथी की माँग की, किन्तु राजकुमारों ने उस मांग को अस्वीकार कर दी । प्रहलाद क्रोधित हो कर युद्ध के लिए चढ़ आया और अन्त में उसी के चक्र से मारा गया । उसके समस्त राज्य पर राजकुमार दत्त ने अधिकार कर लिया और वासुदेव पद पर प्रतिष्ठित हुआ । राजकुमार नन्द बलदेव हुए। राज्य एवं भोग में गृद्ध एवं दुर्ध्यान में लीन रहते हुए दत्त वासुदेव अपनी ५६००० वर्ष की आयु पूर्ण कर के पाँचवी नरक में गए । नन्दन बलदेव संसार से विरक्त हो कर दीक्षित हो गए और चारित्र की आराधना कर मोक्ष प्राप्त हुए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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