Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० मल्लिनाथजी
WULOAARARA
जम्बूद्वीप के अपर-विदह के सलिलावती विजय में वीतशोका नाम की नगरी थी। 'बल' नाम के महाराजा वहाँ राज करते थे। वे बड़े पराक्रमी और योद्धा थे। उनके 'धारणी' नाम की महारानी थी। 'महाबल' उनका राजकुमार था । वह भी पूर्ण पराक्रमी था। उसका कमलश्री आदि पांचसी राजकुमारियों के साथ विवाह हुआ था । राजकुमार महाबल के--अचल, धरण, पूरण, वसु, वैश्रमण और अभिचन्द्र नाम के छह राजा बालमित्र थे। एक बार उस नगरी के बाहर इन्द्रकुब्ज उद्यान में कुछ मुनि आ कर ठहरे । महाराज बल ने धर्मोपदेश सुना और युवराज महाबल को राज्य भार दे कर प्रव्रजित हो गए । तप-संयम की विशुद्धता पूर्वक आराधना करते हुए महाराजा ने मुक्ति प्राप्त की।
महाबल नरेश कमलश्री महारानी से बलभद्र नामका पुत्र हुआ। यौवनवय प्राप्त होने पर राजकुमार बलभद्र को युवराज पद पर प्रतिष्ठित किया और आप अपने छः मित्र राजाओं के साथ जिनधर्म का श्रवण करने लगे। महाराजा महाबलजी ने वैराग्य में सराबोर हो कर एक बार अपने मित्रों से कहा
___ "मित्रों ! मैं तो संसार से उद्विग्न हुआ हूँ और शीघ्र ही निग्रंथ-प्रव्रज्या लेना चाहता हूँ। तुम्हारी क्या इच्छा है ?"
---"मित्र ! जिस प्रकार अपन सब सांसारिक सुख भोग में साथ रहे, उसी प्रकार त्याग-मार्ग में भी साथ रहेंगे । हमारी योग-साधना भी साथ ही होगी। हम एक दूसरे से भिन्न नहीं रह सकते । हम मुक्ति में भी साथ ही पहुँचेंगे।"
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