Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० कुंथुनाथजी
इस जम्बूद्वीप के पूर्व-विदेह के आवत्त विजय में खड्गी नामक नगरी में सिंहावह राजा राज करता था। वह उत्तम गुणों से सम्पन्न, धर्मधुरन्धर, धर्मियों का आधार, न्याय का रक्षक, पापमर्दक और समृद्धियों का सर्जक था। उसका प्रभाव इन्द्र के समान था। वह धर्म-भावना से युक्त हो संसार व्यवहार चलाता था। कालान्तर में श्री संवराचार्य के उपदेश से प्रभावित हो कर उसने श्रमण दीक्षा स्वीकार कर ली और उत्तम आराधना से तीर्थकर नामकर्म को निकाचित कर लिया। काल के अवसर उत्तम भावों में मृत्यु पा कर सर्वार्थसिद्ध महाविमान में अहमिन्द्र हुआ।
जम्बूद्वीप के इस भरत-क्षेत्र में हस्तिनापुर नाम का महानगर था । महाराजा शूरसेन वहाँ के प्रभावशाली नरेश थे । वे धर्मात्मा, उच्च मर्यादा के धारक, न्याय और नीति के पालक, पोषक और रक्षक थे। 'श्रीदेवी' उनकी महारानी थी। वह भी कुल, शील, सौन्दर्य एवं औदार्यादि उत्तम गुणों से सुशोभित थी। महाराजा और महारानी का जीवन सुखपूर्वक व्यतीत हो रहा था।
सभी देवलोकों में उत्तमोत्तम सर्वार्थसिद्ध नामक महाविमान का तेतीस सागरोपम का आयुष्य पूर्ण कर के सिंहावह मुनिराज का जीव, श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की नौमी को, कृतिका नक्षत्र में महारानी श्रीदेवी के गर्भ में उत्पन्न हुआ। महारानी ने चौदह महास्वप्न देखे । गर्भकाल पूर्ण होने पर वैशाख-कृष्णा चतुर्दशी को कृतिका नक्षत्र के योग
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