Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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वसंतदेव पुरुषवेशी केसरा के साथ वहाँ से निकल कर एक ओर चल दिया । कामपाल मौनयुक्त आ कर लग्नमंडप में बैठ गया । प्रियंकरा ने कहा- 'बहिन केसरा ! अब चिन्ता छोड़ कर भगवान् अनंगदेव का ध्यान करती रहो, जिससे सुखमय जीवन व्यतीत हो ।"
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भ० शांतिनाथजी भगवान् का निर्वाण
केसरा के विवाह में उसके मामा की पुत्री ' मदिरा' भी आई हुई थी। वह केसरा के प्रेम सम्बन्ध की बात सुन चुकी थी। उसने केसरा वेशी कामपाल के कान में कहा; 'बहिन ! तेरा मनोरथ सफल नहीं हुआ। इसका मुझे दुःख है । में भी हतभागिनी हूँ। मेरा प्रिय भी मेरे मन में स्नेहामृत का सिंचन कर के ऐसा गया कि फिर देखा ही नहीं । भाग्य की बात है ।"
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कामपाल ने देखा -- यह तो वही मदिरा है कि जिसके वियोग में वह भटक रहा था । उसने संकेत कर के मदिरा को एकान्त में बुलाया । वे दोनों प्रच्छन्न द्वार से निकल कर चले गये और वसंतदेव और केसरा के साथ दूसरे नगर में रहने लगे ।
'राजन् ! वसंतदेव और कामपाल --: दोनों पूर्व-भव के स्नेह से तुम्हें पाँच वस्तुएँ भेंट करते हैं । ये वस्तुएँ तुम प्रियजनों के साथ भोगने में समर्थ बनोगे । इतने दिन तुम प्रियजन को नहीं जानते थे, इसलिए उन वस्तुओं का भोग नहीं कर सके ।"
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प्रभु की वाणी सुन कर राजा को और उन सम्बन्धियों को जाति-स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। राजा भगवान् को वन्दना कर के पूर्वभव के उन सम्बन्धियों के साथ राजभवन में आया । भगवान् अन्यत्र विहार कर गए।
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भगवान् का निर्वाण
केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद भगवान् २४९९९ वर्ष तक विचरते रहे । निर्वाण समय निकट आने पर प्रभु सम्मेदशिखर पर्वत पर पधारे और ९०० मुनियों के साथ अनशन किया । एक मास के अन्त में ज्येष्ठ कृष्णा १३ को, भरणी नक्षत्र में उन मुनियों के साथ भगवान् मोक्ष पधारे । भगवान् का कुल आयुष्य एक लाख वर्ष का था । इसमें से कुमार, अवस्था, मांडलिकराजा, चक्रवर्तीपन और व्रतपर्याय में पच्चीस-पच्चीस हजार वर्ष व्यतीत
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